________________
(तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
५५७ पुण्यवानी से बैल के भव में आचार्य भगवन्त जैसे महापुरुष के दर्शन किए।
दक्षिण पधारने पर इस भक्त की भक्ति पर भी थोड़ा सा विश्वास हुआ। संकेत के रूप में फरमाया - “तू माटी का गणेश नहीं, गजानन्द है, संघ को तेरी जरूरत पड़ेगी, ध्यान रख लाला।"
पिताश्री के देहान्त के समय निमाज में संसार का काम निपटाकर पूरे परिवार एवं गाँव के सदस्यों के साथ कोसाणा चातुर्मास में गुरुदेव के दर्शन करने हेतु गया। गुरुदेव बड़ी कृपा कर व्याख्यान में पधारे तथा हमें पिताश्री | सुगनमल जी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उसी समय हमने चातुर्मास की विनति की। आचार्यदेव के पीपाड़ पहुँचने पर संघ-हित को सोचकर चातुर्मास हेतु पाली को स्वीकृति प्रदान की गई। मध्याह्न के समय मैं आराध्यदेव के चरणों में रो पड़ा। पं. रत्न श्री शुभेन्द्रमुनि जी म.सा. पास ही विराजमान थे। बोले-“भक्त ने कुछ फरमावो जल जलो वै रयो है” आचार्य भगवन्त ने फरमाया-"पाली के बाद पहले निमाज का ध्यान रखूगा, तू मारे सुगन जी रे जगह है मने ध्यान राखणो है।”
संयोग से पाली से विहार निमाज की ओर हुआ। मैं बगड़ी ग्राम में गुरुदेव के चरणों में उपस्थित हुआ। दिनांक १०.३.१९९१ को आचार्य भगवन्त ने निमाज में प्रवेश किया। चौके की व्यवस्था मेरे जिम्मे होने से मैं मात्र दर्शन ही कर पाता, अधिक समय नहीं निकाल पाता था। महावीर जयन्ती के पहले दोपहर में दर्शन करने लगा तब आराध्य देव ने रुककर कहा-“लाला दूर दूर क्यों रहता है, तेरी भक्ति में फरक है? हम तो यह देहलीला यहीं छोड़ने वाले हैं।"
संथारा के पच्चक्खाण के साथ मुझे लगा अब महापुरुष नहीं रहेंगे। अन्तिम श्वासोच्छवास के समय बाहर ही खड़ा देखता रह गया। तेरह दिन के संथारे के साथ आचार्य भगवन्त अपने लक्ष्य की ओर महाप्रयाण कर गए, पर आराध्य देव मेरे हृदय पटल पर आज भी विराजमान हैं।
१३, छठा क्रास, त्रिवेणी रोड़ यशवन्तपुर, बैंगलोर, ५६००२२