________________
चुम्बकीय शक्ति के धनी : पूज्य गुरुदेव
. डॉ. सम्पतसिंह भाण्डावत पूज्य गुरुदेव की मुझ पर व मेरे परिवार पर असीम कृपा थी। आज जो कुछ भी धार्मिक प्रवृत्तियाँ एवं विचार || मेरे व मेरे परिवार वालों में हैं, यह सब उनकी महती कृपा का फल है।
पूज्य गुरुदेव आध्यात्मिक गुरु थे। गुरु शब्द के अर्थ की गरिमा कितनी है, मैं नहीं जानता, किन्तु जैन परम्परा के अनुसार गुरु का गौरव अतुलनीय है। यदि गुरु प्राप्त ही न हो तो व्यक्ति का जन्म सच्चे अर्थों में व्यर्थ है।
स हि विद्यात: तं जनयति तदस्य श्रेष्ठं जन्म।
मातापितरौ तु शरीरमेव जनयतः ।। माता-पिता शरीर को अवश्य जन्म देते हैं, किन्तु वास्तविक जन्म गुरु से होता है, जिसे शास्त्रकारों ने श्रेष्ठ जन्म कहा है।
सच्चे मायने में पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. मेरे सद्गुरु थे। उन्होंने मेरे जीवन को इस तरह से ढाला कि मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं उनका गुणगान कर सकूँ, किन्तु मेरे मन में ऐसी कुछ बातें हैं जिनका मैं अवश्य | उल्लेख करना चाहता हूँ।
- पूज्य गुरुदेव जब सवाईमाधोपुर विराज रहे थे, तब आगामी चातुर्मास रेनबो हाउस, जोधपुर में करने हेतु निवेदन किया। गुरुदेव मुस्कुराये और कहने लगे कि “अरे भोलिया ! थारो बंगलो तो किराये दियो हुओ है।" जब मैंने गुरुदेव से अनुरोध किया कि आपकी कृपा हो जाय तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप चातुर्मास रेनबो हाउस में करेंगे।
उसी वक्त मैं जोधपुर आया तो पता चला कि जो खनिज विभाग वाले किरायेदार थे, वे हफ्ता भर में खाली कर देंगे। मैं दौड़ा-दौड़ा पूज्य गुरुदेव की सेवा में पहुँचा और अर्ज किया कि गुरुदेव बंगला खाली हो गया है। आपको वहाँ चातुर्मास करना होगा , गुरुदेव की मौन स्वीकृति हो गई और सन् १९८४ का चातुर्मास रेनबो हाउस में हुआ। इस चातुर्मास से मेरे परिवार को एवं मुझे धर्मक्रिया में सक्रिय रूप से जुड़ने का अनोखा लाभ मिला। कोर्ट से लगभग पूरे चार माह अवकाश लेकर आपके सान्निध्य का लाभ लेते हुए जो आनन्द मिला उसे शब्दों में प्रस्तुत नहीं कर सकता। मैंने उस समय आपको निकट से देखा। आपके असाम्प्रदायिकता , गुणियों के प्रति प्रमोदभाव, | साधना के प्रति सजगता, अल्पभाषिता, अप्रमत्तता आदि अनेक गुणों ने मुझे आकर्षित किया।
पूज्य गुरुदेव अनुशासनप्रिय थे। आप समय का पूरा अर्थात् एक-एक मिनट का सदुपयोग करते थे।
अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के १५ वर्षों तक कार्याध्यक्ष एवं अध्यक्ष पद का दायित्व वहन करते हुए मैंने देखा कि आप कितने निस्पृह, विवेकशील एवं साधना के सजग प्रहरी हैं। आपने संयम की निर्मल पालना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी । आप भक्तों के पीछे नहीं थे, भक्त आपके लिए लालायित रहे। ___पूज्य गुरुदेव में चुम्बकीय शक्ति थी । जो कोई भी उनके सम्पर्क में आता वह उनकी ओर खिंचा चला आता था तथा अपने आपको बड़ा भाग्यशाली समझता था। मानो वह साक्षात् भगवान के सामने बैठा है और वे साक्षात् | (भगवान ही थे।