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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ५२४ सकता था । पूज्य आचार्यप्रवर ने कुछ समय पश्चात् सिंहपोल से विहार किया और सिरे बाजार होते हुए मुथा जी के मंदिर पधारे। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब पूज्य आचार्यप्रवर अपनी सन्त-मण्डली सहित लखारों के बास की ओर मुड़ने लगे। (क्योंकि नागौरी गेट जाने का यह सीधा रास्ता है ।) उस समय श्रद्धालु सुश्रावकों ने पूज्य आचार्यप्रवर से निवेदन किया कि आप कपड़ा बाजार, कटला बाजार से होते हुए पधारें । श्रद्धालु सुश्रावकों को उत्पात की आशंका थी । पूज्य आचार्यप्रवर ने श्रावकों की विनति को ध्यान में रखकर कपड़ा बाजार होते हुए प्रस्थान | किया। उस समय हमने देखा कि कतिपय प्रमुख विरोधी श्रावक बाजार में दुकानों पर बैठे हुए थे, परन्तु उन्होंने विहार में कोई अशोभनीय प्रदर्शन नही किया । भला कर भी कौन सकता था ? पूज्य आचार्यप्रवर समता-साधना के धनी धीर गंभीर और महान् संत थे । आचार्यप्रवर की यह मान्यता थी कि उचित रीति से शासन करने वाले को बहुत सुनना और कम बोलना | चाहिए। ऐसा करने में शास्ता को सफलताश्री स्वयं वरण करती है। आचार्य श्री सम्प्रदाय के संकुचित दायरे में विश्वास नहीं करते थे । जब कभी स्थानकवासी सम्प्रदायों में श्रमण समाचारी के संबंध में समस्याएँ उत्पन्न हुईं अथवा अलग धारणाएँ बनीं, उस समय उनको सुलझाया और समता का प्रयास किया तथा आपसी प्रेम को बनाए रखने का संदेश दिया । धार्मिक क्षेत्र में नारी समाज को जागरूक किया । श्राविका समाज में ज्ञानपूर्वक क्रिया की आवश्यकता पर | बल दिया। रूढिवाद एवं जड़तामयी भावनाओं में ज्ञान ही परिवर्तन करने में समर्थ है, ऐसा सदुपदेश दिया। गुरुदेव ने श्रावकों के पारस्परिक विवाद को कम किया तथा उन्हें उस मार्ग पर चलने का संदेश दिया जिससे समाज का | उत्थान और संगठन मजबूत बने । आचार्य श्री के चिन्तन में विशालता या उदारता को स्थान था, संकीर्णता को नहीं । I मैंने अनन्त आस्था के केन्द्र आचार्य श्री के संबंध में थोड़ा लिखने का प्रयास किया है। आचार्य श्री के गुण | अनन्त थे और मैं उन गुणों का वर्णन करने में असमर्थ हूँ । आचार्य श्री संयम प्रदाता, प्रेरणा के पावन स्रोत, विवेक | के शाश्वत सरोवर, साधना पथ के अमर साधक, ध्यान- मौन साधना के प्रबल पक्षधर, साम्प्रदायिक सौहार्द व समता के विश्वासी, श्रमण संस्कृति के महान् सन्त, विनय और विवेक के शाश्वत सरोवर, सरलता की साकारमूर्ति और जीवन पथ-प्रदर्शक युग पुरुष थे । २६ जून १९९८ पूर्व न्यायाधिपति, राजस्थान उच्च न्यायालय एवं पूर्व अध्यक्ष राज्य आयोग, उपभोक्ता संरक्षण, राजस्थान चन्दन, पावटा बी-२ रोड, जोधपुर (राज.) ·
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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