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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं कोई अज्ञानी मास-मास की घोर तपस्या करे और पारणे के समय कुश यानी डाभ की अणी पर ठहरे इतने अन्न से पारणा करे, तो भी उससे कुछ नहीं होता। अज्ञानपूर्वक किया गया इस प्रकार का घोर तप वस्तुतः चारित्र और श्रुत-धर्म के सोलहवें अंश की तुलना में भी कहीं नहीं ठहरता। मुमुक्षु साधक की ओर से, चिरकाल से इस प्रकार की जिज्ञासा रहती आयी है कि हे भगवन् ! इस आत्मा को अनादिकाल से कर्मों के बंधनों में भव-भ्रमण करते हुए अनन्त काल बीत गया। एक-एक गति में, एक-एक योनि में अनन्त-अनन्त बार जन्म- मरण कर चुकने के उपरान्त भी आज तक आत्मा बंधनों से मुक्त नहीं हो पाया। तो आखिर इस बंधन से मुक्त होने का, इस जन्म-मरण की अनादि-अनन्त दुःख परम्परा से सदा के लिए मुक्त होने का रास्ता क्या है? मुमुक्षु आत्माओं की इस जिज्ञासा को जानकर सर्वज्ञ-सर्वदर्शी करुणासिन्धु प्रभु महावीर ने उन पर दया की और बंधन से मुक्त होने का सही मार्ग बताया। उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाइसवें अध्ययन की दूसरी गाथा में मोक्ष का मार्ग बताया गया है। अनन्त करुणाकर प्रभु महावीर ने कहा-'हे मानव ! वह बंधन-मुक्ति का रास्ता तेरे स्वयं के हाथ में है, बंधनमुक्ति का वह उपाय तेरे अन्दर ही है। केवल आवश्यकता है, उस उपाय के अनुसार पुरुषार्थ करने की।' देखो मुक्ति का मार्ग क्या है
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। महावीर ने बंधन मुक्त होने की, मोक्ष प्राप्त करने की मार्ग-चतुष्टयी बताकर कहा-'ओ मुमुक्षु ! अगर तुमने सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप इन चार की सम्यक् आराधना कर ली तो निश्चित समझ कि तेरे हाथ में मोक्ष का मार्ग आ गया। ये चारों कोई अलग-अलग रास्ते नहीं, एक ही हैं-एक ही रास्ता है, इन
चारों में परस्पर सम्बंध है, एक की दूसरे से कड़ी मिली हुई है। • ज्ञान की आराधना से जीव समस्त पदार्थों को, समस्त भावों को जानता है, दर्शन से तत्त्वज्ञान में, सन्मार्ग में श्रद्धा
करता है, चारित्र से कर्मों के आस्रवों का, नये कर्मों के बंध का अवरोध करता है और तप के द्वारा आत्मा पर जमे हुए पूर्व के कर्म-मैल को धोकर प्राणी विशुद्ध चैतन्य स्वरूप को प्राप्त करता है। मोक्षमार्ग के इन चार उपायों में से ज्ञान और दर्शन की आराधना द्वारा विशुद्ध ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति होती है। जिसने ज्ञान और दर्शन पा लिया, उसके अज्ञान और मिथ्यात्व के बंधन कट जाते हैं। इन दोनों की आराधना से चारित्र-मोह के बंधन भी ढीले हो जाते हैं। मोक्ष के तीसरे उपाय चारित्र से मोहनीय कर्म और तप से अन्तराय कर्म के बंधन कटते हैं। जब मोहनीय और अन्तराय कर्म के बंधन ढीले हो जाते हैं तो फिर नाम, गोत्र, आयु और वेदनीय इन चारों अघाती कर्मों के बंधनों को काटना कोई मुश्किल नहीं रहता। बंधन-मुक्ति के सम्मिलित रूप से ये चारों उपाय हुए-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। यदि इन चार में से बंध काटने वाले किसी एक उपाय की भी कमी रह जाएगी, तो बंधनों से हमारी पूर्ण रूप से मुक्ति नहीं होगी। • किसी ने ज्ञान के द्वारा आत्मशोधन की आवश्यकता प्रतिपादित की, किसी ने कर्मयोग की अनिवार्यता बतलाई
तो किसी ने भक्ति के सरल मार्ग के अवलम्बन की वकालत की। मगर जैनधर्म किसी भी क्षेत्र में एकान्तवाद को प्रश्रय नहीं देता। वह अपनी भाषा में ज्ञान और क्रिया के समन्वय द्वारा आत्मशुद्धि का होना प्रतिपादित करता है। जैनधर्म के अनुसार एक ही मार्ग है, पर उसके अनेक अंग हैं, अत: उसमें संकीर्णता नहीं, विशालता है और प्रत्येक साधक अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार उस पर चल सकता है।