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द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
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जिस मनन से अपनी आत्मा, अपनी बुद्धि मोक्ष की ओर जावे, बन्धन काटने की ओर जावे, उसे बोलते हैं ज्ञान | ज्ञान क्या है और विज्ञान क्या ? यह शिल्पकला, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, वकालात आदि जितने प्रकार के शिक्षण हैं यह सब विज्ञान हैं, ज्ञान नहीं । मोक्ष में धी का होना ज्ञान है। अपनी बुद्धि बन्धन काटने में लगे, मोक्ष की ओर लगे, वह ज्ञान है। संसार में ऐसे मानव बहुत कम होंगे जिनको क्रोध आवे ही नहीं । कषाय आयेगा, लेकिन जो ज्ञान वाले हैं उनमें और बिना ज्ञान वालों में फर्क इतना ही है कि ज्ञान वाले कषाय को रहने नहीं देंगे ।
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■ ज्ञान एवं वैराग्य
• ज्ञान एवं वैराग्य की शिक्षा से पापी भी सुधर सकते हैं। सुधर्मा के द्वितीय पट्टधर जम्बू एवं उनके शिष्य प्रभव का जीवन इसमें साक्षी है | तरुणाई में इन्द्रिय निग्रह अतिदुष्कर कहा गया है। जम्बू के वैराग्य एवं ज्ञान का असर चोरनायक प्रभव पर पड़ा । ५०० चोरों के साथ उसने भी व्रत लेना चाहा । जम्बू ने बड़ी प्रसन्नता से उसको साथ लिया और गुरु चरणों में पहुँच कर दीक्षित हो गये । ४४ वर्षों तक जम्बूस्वामी ने शासन दिपाया, फिर निर्वाण पधारे। इनके पद पर प्रभव विराजे, कहाँ चोरों का नेता और कहाँ श्रमणसंघ का नायक ! जीवन बदल गया । इसीलिए कहा है- 'घृणा पाप से हो, पापी से कभी नहीं लवलेश ।'
• गगन से बरस कर मेघ जैसे भूमि की गर्मी शान्त करता और गलियों की गंदगी को धो देता है, वैसे ही हमें ज्ञानवर्षा से कषायों की जलन को शान्त करना और विकारों के मैल को धो डालना है ।
■ ज्ञान-पिपासा
प्रतीत होता है कि उस युग के मानव, चाहे वे अमीर हों अथवा गरीब, सभी अपना जीवन मात्र खाने-कमाने में ही व्यर्थ नहीं गंवाते थे, बल्कि वे धर्म का मूल्य भी समझते थे। अपने जीवन को कैसे सार्थक किया जाए, इस बात की जिज्ञासा भी उनके मन में रहती थी। यही कारण है कि सुबाहु कुमार प्राप्त भोग - सामग्री से उन्मुख | होकर प्रभु सेवा में पहुँचा । यदि कोई अन्य व्यक्ति वहाँ जाता तो संभव है आप सोचते कि भगवान् महावीर से कुछ पाने की आशा से जा रहा है। कोई व्यवसायी जिसे व्यवसाय में अभी कुछ मिला नहीं है, वह संतों के पास | इसलिए भी जा सकता है कि संत यदि ठंडी नजर से उसकी ओर देख लें तो उसे लाभ हो सकता है । कोई व्यक्ति विदेश जा रहा है तो वह संतों के पास इस निमित्त भी आएगा कि महाराज का आशीर्वाद मिलने से उसकी यात्रा सफल हो सकती है। आप ऐसी कल्पना न करें कि सुबाहु भी ऐसा ही था। सुबाहु राजघराने में उत्पन्न एक राजकुमार था, उसे किसी भी वस्तु का अभाव नहीं था। वह मात्र ज्ञान की पिपासा लेकर प्रभु शरण में पहुँचा था ।
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दुनिया में बड़े से बड़े लोग, चाहे धनी हों अथवा अधिकारी वर्ग या शासक वर्ग के, सभी विषय-वासना के पीछे दौड़ रहे हैं। लेकिन इसके विपरीत प्रभु महावीर इन्द्रिय भोग को छोड़ आये हैं, हजारों श्रमण अपने विषय कषायों
को छोड़कर इनके पीछे चल रहे हैं। देखें उनको इसमें क्या आनंद आ रहा है? उनकी जीवन चर्या क्या है ? इस जिज्ञासा को लेकर सुबाहु पहुँचा भगवान् की चरण- सेवा में । यह जिज्ञासा मात्र सुबाहु की नहीं, सबकी हो सकती है।