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________________ ३८० नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं रह जाता है। इसी तरह एक आदमी सामायिक करता है, रात्रि-भोजन नहीं करने का नियम ले रखा है, शीलव्रत का खंध लिया है ये नियम कब तक रहेंगे? ये नियम भी शरीर छूटने के साथ ही छूट जाते हैं। देह छूटने के साथ धन भी छूट गया और व्रत-नियम भी छूट गये। किन्तु एक फर्क है, वह यह कि धन छूटने के साथ ही धन का जो सुख था, आनंद था, वह सुख भी यहीं छूट गया, पर व्रत-नियम के पालन से जो पुण्य-लाभ संचित किया है, वह परलोक में भी साथ चलेगा। व्रत तो इसी जन्म तक रहे, लेकिन व्रत-पालन का लाभ, उससे उपार्जित किया हुआ पुण्य परलोक में भी उसके साथ चलेगा। व्रत-नियमों से उसकी आत्मा की जो शक्ति बढ़ी है, वह | परलोक में भी साथ रहेगी। ज्ञान और दर्शन, ये इस जन्म की दो चीजें ऐसी हैं जो अगले जन्म में भी साथ चलती है। इस जन्म में ज्ञान की | अच्छी आराधना की, उसमें मन को अच्छी तरह से रमाया, शास्त्रों के पठन-पाठन में मन रमा रहा और आयु पूर्ण कर देवगति में गया तो देवगति में भी उसके जीवन में वह ज्ञान प्रकाश करेगा। उसकी आत्मा की ज्योति अन्य देवों की अपेक्षा अधिक प्रदीप्त होगी। इसीलिए कहा है कि ज्ञान और दर्शन इस जन्म में भी रहते हैं और अगले जन्म में भी साथ रहते हैं। भगवान ने फरमाया कि ज्ञान-प्राप्ति के दो उपाय हैं। एक तो यह है कि शास्त्रों के जानकार ज्ञानी का सत्संग मिले, और दूसरा शास्त्रों के पढ़ने-पढ़ाने का अवसर मिले और साथ ही साथ शास्त्रों की सुलभता हो, तभी ज्ञान प्राप्त होगा। एक आदमी व्याख्यान सुनने के बाद घर जाकर उस पर चिन्तन करता है तो धीरे-धीरे उस ज्ञान का अभ्यास होता है। दूसरे आदमी ने व्याख्यान से उठते ही पल्ला झटक दिया। सोचा, अपन ने तो महाराज का व्याख्यान सुन लिया, अब काम-धंधे पर लगना है, महाराज के ज्ञान से करना क्या है। ज्ञान को समझने की योग्यता होते हुए भी उसे ज्ञान में रुचि नहीं, इसलिए वह ज्ञान को न तो समझ सकता है और न ही सीख सकता है। • ऐसा क्या जादू था, क्या कारण था, भगवान् नेमिनाथ और भगवान् महावीर ने ऐसी कौन-सी वाणी कही कि उसे एक बार सुन कर ही बड़े-बड़े राजघरानों के युवक, युवतियाँ, वृद्ध, वृद्धाएँ, बालक तथा बड़े-बड़े गाथापति, कोटिपति अनुपम ऐश्वर्य, अतुल धन-सम्पत्ति और विपुल भोग-सामग्री को ठुकरा कर कंटकाकीर्ण अति कठोर साधना-पथ पर अग्रसर हो गये ? जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, उनको (श्रोताओं को) सही ज्ञान हो गया। भगवान् की वाणी को सुन कर उन्हें विष और अमृत का सच्चा ज्ञान हो गया और इसी सही ज्ञान के फलस्वरूप उन्होंने भौतिक सम्पदा, ऐश्वर्य एवं भोगोपभोग की सामग्री को विष समझ कर ठुकरा दिया और संयम को अमृत समझ कर अंगीकार कर लिया, आत्मसात् कर लिया। • ज्ञान की भक्ति, विनय एवं आराधना करने से हमारी आत्मा पर अनन्त-अनन्त काल से जमा अज्ञान का अंधेरा दूर हो सकता है। • ज्ञान का विरोध करना, ज्ञान को छिपाना या ज्ञानी के उपकार को नहीं मानना, ज्ञान में बाधा देना, ज्ञान और ज्ञानी की आसातना करना, ज्ञान के प्रति अनादर प्रकट करना, ज्ञान की मखौल उड़ाना–ये ज्ञान पर आवरण के प्रमुख कारण हैं। इन कारणों को जब कोई जान-बूझकर अथवा अनजान में काम लेगा तो अज्ञान का जोर बढ़ेगा और ज्ञान पर आवरण आ जायेगा। • व्यावहारिक ज्ञान की दलाली के परिणाम कभी अच्छे और कभी बुरे भी हो सकते हैं। यह देखा गया है कि
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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