________________
(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३७३॥
जल-रक्षण
• आजकल घर-घर और गली-गली में नल हो जाने से पानी का वास्तविक मूल्य नहीं समझा जाता। किन्तु जब
कभी कारणवश जल केन्द्र से पानी का निस्सरण कम हो जाता है अथवा बिल्कुल ही नहीं होता तब देखिए पैसे देने पर भी घड़ा भर पानी नहीं मिल पाता और जान मुसीबत में फंसी जान पड़ती है। भले ही प्रचुर जल वाले प्रदेश में कठिनाई प्रतीत नहीं होती हो, तब भी प्यास की स्थिति में जल का महत्त्व आसानी से समझा जा सकता है। सोना-चाँदी और वस्त्राभूषण के बिना आदमी रह सकता है, पर जल के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता। अतः सदगृहस्थ को यह ध्यान रखना चाहिये कि पानी की एक बँद भी व्यर्थ नहीं जाए। पानी के अमर्यादित उपयोग से कीचड़ फैलता है और उसमें मच्छर आदि अनेक जन्तु उत्पन्न होते हैं। मनुष्य यदि विवेक से काम ले तो व्यर्थ की हिंसा और मलेरिया आदि रोगों से अनायास ही बच सकता है। मरुभूमि के लोगों को मालूम है कि पानी का क्या मूल्य है। अनछाना पानी नहीं पीने से कितने ही जीवों की हिंसा टल जाती है। तृणभक्षी पशु भी जब ओठ से फूंक कर पानी पीते हैं, कुत्ते, बिल्ली या शेर की तरह वे जीभ से लपलप कर नहीं पीते, तब मनुष्य को तो सावधानी रखनी ही चाहिये। ऐसा करने से आरोग्य और धर्म दोनों प्रकार का लाभ है। जिनवाणी
• जिस तरह मेघ की वर्षा जमीन पर अच्छे ढंग से पड़ जाती है तो भूमि नरम हो जाती है, कड़ी नहीं रहती और
पड़ने वाला बीज अच्छी फसल पैदा कर सकता है। जगह-जगह छोटे-मोटे गड्ढे भर जाते हैं, तलाई का रूप ले लेते हैं और जंगल के प्राणियों को भी पानी सुलभ हो जाता है। छोटा-सा मेघ इतना काम कर जाता है तो भगवान् की वाणी की वर्षा पाकर आप भी कोमलता, स्वच्छता, निर्मलता और आत्मगुणों को धारण करके आगे बढ़ने का प्रयत्न करेंगे तो आपको इस लोक एवं परलोक में कल्याण व आनन्द की प्राप्ति हो सकेगी। जीवन की दौड़ • संसार के प्राणी-बच्चे, बूढ़े, जवान सभी विजय की दौड़ में अपनी शक्ति, अपनी ताकत पूरे जोश के साथ लगाते
हैं। संसार के मैदान में हमको विजय मिले, हम जीतें, हमारा नम्बर आगे रहे, इसी चिन्ता में दिन-रात दौड़ते रहते हैं.। इनमें से कोई अर्थ यानी धन के लिए दौड़ता है, कोई परिवार के लिए दौड़ता है, कोई वैभव के लिए दौड़ता है, कोई कुर्सी के लिए दौड़ता है तो कोई सत्ता के लिए दौड़ता है। इस तरह इस घुड़ दौड़ में दौड़ने वाले हजारों-लाखों मानव हैं। कोई कामयाब होता है या बीच में ही रवाना होकर चला जाता है, इसका कोई ठिकाना नहीं, क्योंकि यह देह अनित्य है।
आप माने या न माने, अर्थ-लालसा के पीछे हमारे जो भाई-बहिन दौड़ लगा रहे हैं, इस वास्तविक तथ्य को वे मंजूर नहीं करेंगे। उनकी दौड़ जारी रहेगी। अर्थ चाहने वालों की अर्थ के लिए भोग चाहने वालों की भोग के लिए, पद चाहने वालों की पद के लिए भूख लगी रहेगी, लेकिन उनको पता नहीं है कि संसार में दुःख ही दुःख
-