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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं । स्वाध्याय । इसलिये कहा गया है कि बिना स्वाध्याय के ज्ञान नहीं होता। ज्ञान की ज्योति जगाने के लिये, आत्मा
की ज्योति जगाने के लिये, स्वाध्याय एक अच्छा माध्यम है। • जैन धर्म किसी जाति-विशेष के बन्धन में बंधा हुआ नहीं है। उसमें ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है, शूद्र है और |
किसान भी है तो व्यवसायी भी है। • हमारा आहार बिगड़ गया तो स्वास्थ्य भी बिगड़ गया। • यदि जीवन में धर्म को व्याप्त करना चाहते हो तो आहार शुद्धि पहली चीज है। . यदि आदमी को अपने विकारों पर काबू पाना है तो पहली शर्त है कि वह आहार प्रमाण से युक्त करे दूसरी यह
कि आहार दोषरहित हो। • समाज के बहुत से भाई अर्थ की कमजोरी से और कुछ ज्ञान की कमजोरी से दोलायमान होते हैं, कुछ समाज
के सहयोग की कमजोरी के कारण दोलायमान होते हैं। इधर उधर होने के ये तीन मुख्य कारण हैं। • सच्चा सन्त प्यार की नजर से देखता है और सामने वाले को पानी पानी कर देता है। • मन के बाहर जाने का सबसे बड़ा कारण राग है, इसलिये इसे कम करो। राग कम करने का उपाय है - बाहरी |
पदार्थों को अपना समझना छोड़ दो।
अर्थ की गुलामी से छुटकारा पाने के लिये कामना को कम करना पड़ेगा। • आज जैन समाज में दिखावा इतना बढ़ गया है कि देखकर विचार आता है। इससे जैन धर्म अपना नाम ऊँचा |
नहीं कर सकता। • बच्चे का सुख, घर वालों का सुख, शरीर का सुख अथवा धन का सुख ये सब सुख किससे मिलते हैं? पुण्य
से। और दुःख किससे मिलता है? पाप से। फिर इस प्रकार की स्थिति में दुःख मिलने पर किसी अन्य पर रोष करना, किसी दूसरे को दुश्मन समझना, विरोधी अथवा अपना अनिष्ट करने वाला मानना उचित नहीं।। संसार में जो दृश्यमान पदार्थ हैं, वे टिकने वाले नहीं हैं। यह सुनिश्चित है, जो उत्पन्न हुआ, उसका विनाश सुनिश्चित है,जो बनता है वह एक दिन अवश्य बिगड़ता है। ये इमारते बनीं हैं, कोठियाँ बनीं हैं, बंगले बने हैं,किले बने हैं,वे सब कभी न कभी नष्ट होंगे, यह अवश्यंभावी है। यह वस्तु का स्वभाव है। अगर किसी की वाणी में ऊपर से कटुता है, तो वह इतनी बुरी नहीं है, जितनी कि भीतर में भरी कटुता। ऊपर वाला बोल देगा और समाधान पाकर शान्त भी हो जाएगा, पर भीतर की कटुता बड़ी खतरनाक होती है। • जिसमें श्रद्धा नहीं है, वह ज्ञान का अधिकारी नहीं बन सकेगा। • ज्ञान के साथ जो तपस्या है वह ऐसी बड़ी-बड़ी शक्तियों को प्रकट कर देती है, जिससे मानव का मन हिल जाता
• आग की चिनगारी मनों भर भूसे को जलाने के लिए काफी है, वैसे ही तपस्या की चिनगारी कर्मों को काटने के
लिए काफी है। • मन-शुद्धि और चित्त-शुद्धि करेंगे तो आत्मा में बल एवं ताकत आयेगी और कल्याण के भागी बन सकेंगे। • जीवन चलाना महत्त्वपूर्ण बात नहीं है लेकिन महत्त्वपूर्ण बात है - जीवन बनाना।