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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं • मानव तन , धन, परिवार, पदादि के मोह में भूला हुआ है, अत: प्राप्त सामग्री का उचित उपयोग नहीं कर पाता
• बिना ज्ञान के क्रिया करते हुए प्राणी अन्धकार में घूमता है, सत्य प्राप्त नहीं कर पाता। • विद्या से विनय के बदले अविनय बढ़ता हो तो समझना चाहिए कि यह सद्विद्या नहीं है। • ज्ञानी अपनी करणी को भौतिक पदार्थों के बदले नहीं गंवाता। • जो निमित्त पाकर पुरुषार्थ करता है, वह अवश्य ही आत्मा का उत्थान कर लेता है। सद्गुरु का निमित्त पाकर भी
जो पुरुषार्थ नहीं करता वह ज्ञान-लाभ नहीं कर सकता। धर्म-साधना के लिए धन की आवश्यकता नहीं है। इसकी साधना इतनी सस्ती , सरल व सुलभ है कि
अमीर-गरीब सब कोई इसका लाभ उठा सकते हैं। • धन की भूख धन से नहीं मिटती, वह सन्तोष से मिटती है। • देश के नागरिकों को सामूहिक बल से हिंसा का विरोध करना होगा। • अहिंसा, सत्य एवं सदाचार का त्रिगुण मन्त्र धारण कर देश को संकट से बचा लेना चाहिए। • जीवन की गाड़ी में धन का पेट्रोल ही भरते जाओगे और व्रत का जल नहीं होगा तो यात्रा खतरे से खाली नहीं |
होगी। • मन बदल जाता है तो जीवन बदलते देर नहीं लगती।
धर्म के प्रचार में भी आचार का बल चाहिए। • पाप घटाने के लिए आवश्यकता पर नियन्त्रण आवश्यक है। • जल जीवन है, गृहस्थ को उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। • रागी जिन भौतिक वस्तुओं को भूषण मानकर अधिकाधिक बढ़ाना चाहता है, ज्ञानी उनको घटाना चाहता है।
ज्ञानी अज्ञानी का यही खास अन्तर है। • परिग्रह की पूजा से लोग गुणों का सम्मान भूल जाते हैं। • श्रावक का कर्तव्य है कि वह धन-सम्पदा का साधन के रूप में उपयोग करे। उसको साध्य समझकर चलेगा तो |
वह बाधक बनकर उसे मूल साध्य से वञ्चित कर देगी। • स्त्री एवं शूद्र को धर्म का अधिकारी नहीं मानना भ्रान्तिपूर्ण है। • आठ का हो या साठ का, धर्म का मापदण्ड विवेक है।' • चार बातों में लक्ष्य आवश्यक है-तप, संयम, क्षमा और ब्रह्मचर्य । • आचार वह है जो जीवन को पवित्र बनावे।
जिससे अपना अहित हो वह काम छोड़ने योग्य है। • आज अध्यात्म-शिक्षा की महती आवश्यकता है।
सम्यग्ज्ञान ही जीवन को पवित्र बना सकता है।