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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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पधारे। यहाँ भोपालगढ़, पीपाड़ आदि क्षेत्रों के संघ आगामी चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुए। भोपालगढ़ और पीपाड़ क्षेत्र के संघ सं. २०२० की भांति एक दूसरे के प्रतियोगी थे । चरितनायक ने दोनों क्षेत्रों को बराबर तराजू में रखते हुए इस बार भोपालगढ को चातुर्मास की वरीयता प्रदान करते हुए स्वीकृति फरमायी । यहाँ से परिहारों की ढाणी, चिंचड़ली आदि मार्गस्थ गांवों को अपनी पद रज से पावन करते हुए पूज्यपाद आगोलाई पधारे । | आगोलाई गांव का जन-जन पूज्यप्रवर के प्रति श्रद्धालु है । आपकी महनीय प्रेरणा से अनेकों व्यक्तियों ने सप्त | कुव्यसन व धूम्रपान का त्याग कर अपना जीवन सुरभित किया। कई युवकों ने महीने में पाँच सामायिक करने का नियम लेकर गुरु हस्ती के सामायिक सन्देश को अपनाया । श्रद्धालु भक्त श्री राणीदान जी ने सदार आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को शील सौरभ से सुरभित किया। कोरणा पधारने पर करुणाकर की पावन प्रेरणा से ठाकुर मनोहरसिंहजी ने जीवनपर्यन्त मांस, मछली, शराब एवं शिकार का त्याग कर अपने जीवन को पाप | पंक से उबारा। पूज्यपाद जहां भी पधारते, जाति व सम्प्रदाय से परे सभी आपकी करुणा व प्रेरणा से प्रभावित होते, पूर्ण श्रद्धा व आस्था से आपके पावन दर्शन, वन्दन व सेवा का लाभ लेते। मण्डली, बागावास, ढाणीरा, थोब एवं पुरोहित-ढाणी में अनेक कृषक भक्तों ने धूम्रपान, अफीम सेवन व कुशील का त्याग कर अपने जीवन को पावन बनाया। ढाणीरा में षट्काय प्रतिपालक करुणाकर गुरुदेव से दया धर्म की प्रेरणा पाकर प्राणि-हिंसा व मांस-सेवन का त्याग किया। यहाँ आप एक झोंपे में विराजे । झोंपे के बाहर खुले शान्त वातावरण में छोटे वृक्ष के नीचे विराजे सन्त | एवं श्रद्धालु भक्तगण ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे एक कल्पवृक्ष की छांव तले बैठे हों । वस्तुतः पूज्यपाद चतुर्विध संघ एवं श्रद्धालुभक्तों के लिये एक कल्पवृक्ष के समान ही तो थे । यहाँ से पूज्यप्रवर पचपदरा फरसते हुए ६ अप्रेल | को बालोतरा पधारे, जहां आपके सान्निध्य में अक्षय तृतीया का पावन पर्व सम्पन्न हुआ।
बालोतरा से विहार कर पूज्य चरितनायक जाणियाना, कनाना (वीर दुर्गादास राठौड़ की जन्म भूमि), जेठन्तरी, | समदड़ी एवं करमावास में व्रत-नियम कराते हुए मजल पधारे। यहाँ पूज्य आचार्यश्री जयमल जी म.सा. की पुण्यतिथि | वैशाख शुक्ला चतुर्दशी के दिन आचार्य श्री ने फरमाया कि पूज्य श्री जयमलजी म.सा. के त्याग एवं साधनामय तथा स्वाध्यायशील जीवन से शिक्षा लेते हुए हमें भी अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए।
मजल से विहार कर आप ढींढस, लाम्बड़ा, मांडावास, जैतपुर, गडवाला, चारेलाव, केरला एवं जवेड़िया में धर्म- प्रभावना करते हुए १२ मई को पाली पधारे। यहाँ आचार्य श्री रघुनाथ जी म.सा. की परम्परा की श्री तेजकंवर जी | म.सा. आदि ठाणा ६, पूज्य हुकमचन्द जी म.सा की परम्परा की महासती श्री सूरजकंवर जी म.सा. आदि ठाणा ५, पं. रत्न श्री समर्थमल जी म.सा. की परम्परा की श्री सुमति कंवर जी म.सा. ठाणा ४, महासती कमलेशजी आदि ठाणा ४ एवं अमरसिंह जी म. सा. की परंपरा की महासती शीलकंवर जी, उमराव जी, चंदनबालाजी, चंद्रप्रभाजी ठाणा १४ ने आपके पावन दर्शन व प्रवचन का लाभ लिया। पं. रत्न श्री समर्थमल जी म.सा. की परम्परा के श्री पूसाराम जी म.सा. के | स्वर्गवास के समाचार जानकर उन्हें यथाविधि श्रद्धांजलि दी गई । सुराणा मार्केट के स्थानक भवन में एक दिन समाज की दोष दर्शन की प्रवृत्ति पर आपने बहुत ही मार्मिक प्रसंग सुनाया - " किसी चित्रकार ने एक सुन्दर चित्र बनाकर नगर के मुख्य मार्ग के चौराहे पर लगा दिया। उसके शीर्ष स्थान पर लिखा था- 'गलती बताओ।' आने वाले पथिकों में जो भी देखता, कोई न कोई गलती जरूर बताता। दूसरे दिन चित्रकार ने चित्र को अधिक सुन्दर बनाकर शीर्ष स्थान पर लिखा- 'गलती सुधारो।' किसी ने एक भी गलती नहीं सुधारी । समाज में इसी प्रकार गलती बताने वाले बहुत हैं, पर सुधारने वाला विरला ही होता है । "
ज्येष्ठ शुक्ला 'चौथ को आपने भोपालगढ़ के श्रावकों के पाली आने पर उद्बोधन में फरमाया – “जेठ आषाढ