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________________ २३२ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं भाई-बहिनों के लिये मार्गदर्शन किया। चातुर्मास में श्रीमती प्रेमाबाईजी श्रीश्रीमाल ने श्रेणी तप, श्री गोविन्दप्रसाटजी की धर्मपत्नी ने मासक्षपण, श्रीमती जतनबाईजी के ५१ उपवास एवं सुश्रावक श्री शंकरलालजी ललवाणी की १०३ दिन की अखंड मौन पूर्वक जप-तप-संवर साधना तपाराधन के क्षेत्र में कीर्तिमान रहे। श्री केवलमलजी सराणा दर्ग. श्री सूरजमलजी करेला वाले सवाई माधोपुर, श्री चम्पालालजी कर्णावट मुम्बई, श्री माणकचन्दजी कर्णावट कुडी, श्री सम्पतराजजी खिंवसरा जोधपुर, श्री उमरावमलजी अजमेर आदि श्रद्धालु गुरुभक्तों ने परमाराध्य गुरुदेव से आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपने जीवन को शील सौरभ से सुवासित किया। परमाराध्य गुरु भगवन्त द्वारा अपने प्रवचनों के माध्यम से समय-समय पर सैद्धान्तिक जानकारियां भी दी जाती रहीं। प्रवचन में एक दिन पूज्यपाद ने मुनि ज्ञानसुन्दरजी द्वारा रचित 'मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास' का सन्दर्भ | देते हुए फरमाया- “आर्य सुधर्मास्वामी से आर्य शय्यम्भव तक किसी ने जड़मूर्ति को वन्दन किया हो, दर्शन करने हेतु कोई मन्दिर गये हों, ऐसा कहीं शास्त्रीय उल्लेख नहीं है। यदि उस समय मूर्तिपूजा चालू होती तो शास्त्र में श्रमण भगवान महावीर की प्रतिमा और मन्दिर का उल्लेख अवश्य होता।" कहना न होगा करुणाकर पूज्य आचार्य भगवंत के इस चातुर्मास से यहां ज्ञान-दर्शन-चारित्र व तप सभी क्षेत्रों में सर्वांगीण प्रगति हुई व जलगाँव धर्मशासन सन्देश के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। चातुर्मास में शिक्षा, स्वाध्याय और समाज सेवा के क्षेत्र में श्री सुरेशकुमारजी जैन, श्री दलीचन्दजी चोरड़िया और श्री रमेश कुमारजी जैन का सराहनीय योगदान रहा। चातुर्मास में भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति, जयपुर के सहयोग से विकलांग सहायता शिविर का आयोजन किया गया व २०३ विकलांगों के कृत्रिम पैर लगाकर उन्हें कैलिपर प्रदान कर सेवा व अनुकम्पा का आदर्श प्रस्तुत किया गया। समाजसेवी श्री सुरेशकुमार जी जैन द्वारा शासन प्रभावना हेतु | किये गये उल्लेखनीय योगदान हेतु उनका ‘समाज चिन्तामणि' की उपाधि से बहुमान किया गया। • इन्दौर की ओर जलगाँव से विहार कर पूज्य चरितनायक मार्गवर्ती अनेक क्षेत्रों को पावन करते हुए हिंगोना, धरणगांव, अमलनेर को फरसते हुए धुलिया पधारे। यहाँ श्री हीरा ऋषि जी, श्री महेन्द्र ऋषिजी एवं श्री कल्याण ऋषि जी तथा महासती जी श्री चाँदकंवरजी म.सा. ठाणा ८ पूज्यपाद के दर्शनार्थ पधारे। श्री उत्तमचन्दजी वेदमुथा, श्री दीपचन्दजी संचेती, श्री धर्मचन्दजी संचेती आदि ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर पूज्यवर्य के श्री चरणों में अपनी श्रद्धा समर्पित की। धुलिया से माण्डल, नरडाणा, शिरपुर होते हुए आप २१ दिसम्बर को बाडी पधारे। यहाँ इसी दिन स्थविर वयोवृद्ध श्री जयन्तमुनि जी म.सा. का जोधपुर में मार्गशीर्ष शुक्ला ६ संवत् २०३९ को स्वर्गवास होने के समाचार मिलने से निर्वाण कायोत्सर्ग कर श्रद्धांजलि दी गई। पीपाड़ निवासी श्री दानमल जी चौधरी के सुपुत्र श्री जालमचन्दजी चौधरी ने ५६ वर्ष की प्रौढावस्था में पूज्य आचार्य भगवंत से मार्गशीर्ष शुक्ला १० संवत् २००९ को दीक्षा अंगीकार कर ‘पाछल खेती निपजे तो भी दारिद्र दूर' का आदर्श उपस्थित किया। आप पिछले कुछ समय से जोधपुर स्थिरवास विराज रहे थे। 'जयन्तमुनि जी' के नाम से ख्यात बाबाजी म.सा. का संयम-जीवन साधना, सेवा व वैय्यावृत्य हेतु समर्पित था। संयम में आपका प्रबल पुरुषार्थ प्रेरणादायी था। आप सरल, संयमनिष्ठ और सहनशील व्यक्तित्व के धनी थे। ____ बाडी से विहार कर पूज्यपाद खेतिया, सेन्धवा, धामनोद, नाईघाट भेरूघाट जामली आदि क्षेत्रों व राजेन्द्र नगर, आडा बाजार, राज मोहल्ला, राजवाड़ा आदि इन्दौर के उपनगरों को अपनी पदरज से पावन करते हुए उपनगर |
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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