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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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सूरजमलजी मेहता, अलवर ६. श्री हीरालालजी ७. श्री प्रेमचन्दजी डागा, जयपुर ८. श्री सायरचन्दजी चोरडिया, मद्रास ९. श्री जोधराजजी सुराणा, बैंगलोर १०. श्री प्यारेलालजी कांकरिया, रायचूर एवं ११. श्री रत्नकुमारजी रत्नेश, बम्बई) ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया ।
चातुर्मास काल में पाली, निवाई, जयपुर, सवाईमाधोपुर, जलगांव, मद्रास, जोधपुर, महागढ, नीमच आदि के श्रावकों ने आकर कई दिनों तक धर्मसाधना का लाभ लिया। इन्दौर से श्री भँवरलालजी बाफना ने परिवार की पांच पीढियों व संघ के साथ परमाराध्य गुरुदेव के पावन-दर्शन, वन्दन व प्रवचन - श्रवण का लाभ लिया। गुरुदेव के अनन्य भक्त करुणामूर्ति श्री देवेन्द्रराजजी मेहता ने २७ सितम्बर को पूज्यपाद के दर्शन कर स्थानीय संघ को अहिंसा के क्षेत्र में सक्रिय कार्य करने की प्रेरणा की ।
१४ अगस्त को प्रवचन में युवकों व प्रौढों ने समाजसुधार एवं दहेजप्रथा उन्मूलन हेतु कतिपय संकल्प लिये, | यथा- (१) विवाह सम्बन्ध में दहेज, डोरा या बींटी की मांग नहीं करेंगे (२) किसी अन्य माध्यम से मांग नहीं करायेंगे | (३) दहेज का प्रदर्शन नहीं करेंगे (४) कम अधिक देने की बात को लेकर पुत्रवधू अथवा सम्बन्धी जन से ऊँचा नीचा नहीं कहेंगे। अगले ही दिन जैन युवक संघ की साधारण सभा व १९ अगस्त को श्रावक संघ की साधारण सभा ने | इन नियमों को सर्व सम्मति से पारित कर सामाजिक नियम के रूप में स्वीकार किया । इसी सम्बन्ध में यहां दक्षिण भारत जैन सम्मेलन का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें दहेज प्रथा उन्मूलन व सामाजिक कुरीतियों के निकन्दन हेतु ठोस निर्णय लिये गये ।
चातुर्मास में बालकों व युवकों को संस्कारित करने व उन्हें धार्मिक शिक्षण से जोड़ने के विशेष प्रयास हुए। विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से छात्रों व युवकों को वतर्मान युग में महावीर के सिद्धान्तों की उपयोगिता का बोध दिया गया। महान अध्यवसायी श्री महेन्द्र मुनि जी म.सा. की प्रेरणा से १०० से अधिक छात्र-छात्राएं धार्मिक शिक्षण में प्रगति कर धार्मिक परीक्षा में सम्मिलित हुए ।
यहां दिनांक ८ से १० नवम्बर तक २० क्षेत्रों से पधारे ७० विद्वानों व स्वाध्यायी बन्धुओं ने स्वाध्याय संगोष्ठी में भाग लेते हुए पूज्यपाद के चिन्तन “यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान् ” यानी जो क्रियावान है वही विद्वान् है, को चरितार्थ करने पर बल दिया। 'आचार्य श्री रलचन्द्र स्मृति व्याख्यानमाला' के अन्तर्गत श्री गजसिंह जी राठौड | जयपुर, श्री चम्पालालजी मेहता कोप्पल, श्री जोधराजजी सुराना बैंगलोर, प्रो. एस. एन. पाटिल हुबली, डॉ एम. डी. वसन्तराज मैसूर प्रभृति इतिहासविदों व विद्वानों ने 'कर्नाटक में जैन धर्म' व कन्नडभाषा और साहित्य को जैनों का | योगदान' विषयों पर सारगर्भित शोधपूर्ण व्याख्यान देकर श्रोताओं का ज्ञानवर्द्धन किया ।
इस चातुर्मास में परम पूज्य गुरुवर्य हस्ती के विराजने से रायचूर संघ को चिरस्थायी लाभ प्राप्त हुआ । चातुर्मास में हुए ज्ञानाराधन व स्वाध्याय के शंखनाद से यह क्षेत्र आज भी उपकृत है। अद्यावधि इस क्षेत्र में निरन्तर ज्ञानगंगा प्रवाहित हो रही है । चातुर्मास में श्री रिखबचन्दजी सुखाणी, श्री किशनलालजी भण्डारी, श्री शान्तिलालजी भण्डारी, श्री सोभागराजजी भण्डारी, श्री मोहनलालजी संचेती, श्री जंवरीलालजी मुथा, श्री पारस जी, श्री प्यारेलालजी कांकरिया, श्री हुकमीचंदजी कोठारी, श्री माणकचन्दजी रांका, श्री मोहनलालजी बोहरा, श्री बाबूलालजी बोहरा आदि सुश्रावकों का उत्साह, संघ-सेवा व समर्पण सराहनीय रहा।