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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ၃၃ अनुमोदनार्थ अनेक व्रत-व्याख्यान स्वीकार किये। वीर पिता श्री रिखबचन्दजी कांकरिया मद्रास, श्री मदनलाल जी कांकरिया भोपालगढ, श्री किशनलालजी भण्डारी रायचूर, श्री सज्जनराजजी भण्डारी रायचूर, श्री लालचन्दजी धोका यादगिरी एवं श्री सन्तुराजनजी मदुरै ने बाल ब्रह्मचारिणी बहिनों द्वारा जीवन भर के लिये संयम ग्रहण के इस प्रसंग पर आजीवन शीलवत अंगीकार कर सच्ची भेंट प्रदान की। कांकरिया परिवार ने अपनी लाडली सपत्री के साधना-मार्ग पर प्रवेश की खुशी में अपने मूल निवास क्रियोद्धार भूमि भोपालगढ में सम्यग्ज्ञान जैन धार्मिक पाठशाला स्थापित करने की घोषणा की। बड़ी दीक्षा के अनन्तर पूज्यपाद ठाणा ४ से विहार कर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यादगिरी पधारे। यहाँ ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दशी को परमपूज्य आचार्य भगवन ने क्रियोद्धारक आचार्य देव श्री रत्नचन्द्रजी म.सा. की १३६ वीं पुण्य तिथि पर उन महापुरुष के आदर्शों व उपदेशों को प्रस्तुत करते हुए उन्हें जीवन में अपनाने का आह्वान किया। कियोद्धारक महापुरुष के पुण्य दिवस पर श्री पन्नालालजी धोका ने सदार आजीवन शीलवत अंगीकार किया। अनेकों भाई-बहिनों ने दया, उपवास, आयम्बिल आदि विविध तप व पांच-पांच सामायिक की आराधना कर अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की। • रायचूर चातुर्मास (संवत् २०३८) ___ आन्ध्रप्रदेश व कर्नाटक के विभिन्न ग्राम-नगरों में सामायिक स्वाध्याय का शंखनाद और जिनवाणी की पावन गंगा प्रवाहित करने वाले आचार्यप्रवर का १० जुलाई आषाढ शुक्ला १० को ठाणा ७ से उल्लसित भक्तों द्वारा उच्चरित जय-जयनाद के साथ रायचूर चातुर्मासार्थ मंगलप्रवेश हुआ। पूज्यपाद का यह ६१ वां वर्षावास ज्ञान-दर्शन-चारित्र की सौरभ से सुरभित व तपाराधन की दीप्ति से दीप्तिमान रहा। इस चातुर्मास में रायचूरवासियों ने आचार्य देव के पावन सान्निध्य व त्यागी संत-महापुरुषों की सेवा का पूर्ण लाभ लेते हुए ज्ञानाराधन व व्रताराधन दोनों ही क्षेत्रों में आगे बढ़ने का पुरुषार्थ कर अन्य क्षेत्रों के लिये भी चातुर्मास के उद्देश्यों का सच्चा अनुकरणीय आदर्श प्रशस्त किया। रायचूर के शान्त वातावरण में सम्पन्न चरितनायक का यह वर्षावास सभी दृष्टियों से सफल रहा। प्रतिदिन प्रार्थना व प्रवचन में आबाल वृद्ध सभी ने पूरे चातुर्मास में उपस्थित होकर जिनेन्द्र-भक्ति व पावन जिनवाणी में अवगाहन कर प्रवचन-सुधा का पान किया। अपराह्न आचार्य श्री के विद्वान् आगमज्ञ शिष्य पं. रत्न श्री हीरामुनिजी म.सा. (वर्तमान आचार्य प्रवर) द्वारा शास्त्र-वाचना का क्रम बराबर चलता रहा। संयमधनी महापुरुषों के सान्निध्य में रायचूरवासियों ने संवर-साधना में अपनी गतिशीलता का आदर्श उपस्थित किया। प्रत्येक रविवार को २०० से अधिक दया-संवर, चातुर्मास की विशेषता रही। बहिनों में सतरंगी, अठाई, मासक्षपण की आराधना बराबर चलती रही। चातुर्मास प्रारम्भ से सम्वत्सरी महापर्व तक अखण्ड | जप-साधना बराबर चलती रही। सामूहिक क्षमापना की गरिमामयी परम्परा रायचूर संघ की अनूठी विशेषता है। ___चातुर्मास काल में अनेकों अठाइयों के साथ ५ मासक्षपण हुए , विजयाबहिन चोपड़ा ने ५१ दिन की तपस्या की। गुरु भक्त श्रावक श्री शंकरलालजी ललवानी, जामनेर ने ६५ दिवस की मौन साधना कर वाणी - संयम का आदर्श उपस्थित किया। श्री ईश्वर बाबू ललवानी द्वारा अपने पिता श्री की इस मौन साधना का अनुमोदन दान द्वारा किया गया। आचार्य भगवन्त के समर्पित श्रावक श्री पूनमचन्द जी बडेर, जयपुर ने चातुर्मास काल में अखण्ड मौन, जप, ध्यान एवं दयाव्रत की साधना की। चातुर्मास काल में ११ दम्पतियों (१. श्री पुखराजजी रुणवाल २. श्री सुगनचन्दजी कर्नावट इन्दौर ३. श्री बस्तीमलजी बाफना, भोपालगढ ४. श्री केशरीमलजी. नवलखा, जयपुर ५. श्री
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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