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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
श्री
दोनों परम्पराओं के महापुरुषों का पीढ़ियों से प्रेम सम्बन्ध था । पूज्य श्री श्रीलाल जी महाराज सा. व पूज्य | मन्नालालजी म.सा. की परम्परा के मध्य विवाद के समय भी उन महापुरुषों के मन में यह श्रद्धाभिभूत भाव था कि | रलवंशीय प्रशान्तात्मा महामुनि श्री चन्दनमल जी म.सा. जो भी निर्णय देंगे, वह स्वीकार्य है ।
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चरितनायक के पूज्यपाद गुरुदेव पूज्य श्री शोभाचंद जी म.सा. के बीकानेर पधारने पर श्रावकों को पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी म.सा. ने यही समाचार कराये कि ये महनीय महापुरुष ज्ञान, क्रिया व संयम के उत्कट धनी हैं, इनकी सेवा मेरी सेवा है, यह समझ कर संघ इनके सेवा - सान्निध्य का पूर्ण लाभ ले ।
चरितनायक जी का युवावय से ही पूज्य जवाहराचार्य व उनके उत्तराधिकारी महापुरुषों से निकट | सम्पर्क रहा। प्रथम श्रमण-सम्मेलन में वरिष्ठ आचार्यों में से एक पूज्य जवाहराचार्य ने वय में सबसे छोटे आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज साहब की प्रतिभा को पहिचानते हुए फरमाया- “ये यहाँ उपस्थित सभी आचार्यों में वय में छोटे हैं, पर सलाह सूचन में मैं इनको अपने से भी आगे देख रहा हूँ।”
बाद में श्रमण संघ के गठन से ही चरितनायक का उपाचार्य पूज्यश्री गणेशीलाल जी महाराज साहब से निकट सम्बन्ध रहा। दोनों महापुरुषों मे वैचारिक साम्य, एवं परस्पर निकटता तथा शासन हित भावना रही।
अब इन्हीं महापुरुषों के उत्तराधिकारी आचार्य श्री नानालाल जी म.सा. के मारवाड़ की ओर पधारने पर एवं मैत्री सम्बन्ध को नवीन रूप देने की भावना ने आपके मन को भी सहज आकर्षित किया। दोनों महापुरुषों का क्रियोद्धार भूमि भोपालगढ़ में स्नेह मिलन हुआ । परस्पर चर्चा -विमर्श हुए। दोनों परम्पराओं में निकटता स्थापित हुई। अनुयायी श्रावक संघों के कार्यकर्ताओं में भी परस्पर चर्चाएं हुईं। दोनों महापुरुषों मे हुई चर्चा के उपरांत परस्पर | मैत्री सम्बन्ध मजबूत करने हेतु कई बातें तय हुईं। आचार्य श्रीनानालालजी म.सा. का आगामी चातुर्मास मारवाड़ के | पट्टनगर जोधपुर में घोड़ों का चौक में हुआ जिसमें रत्नवंशीय श्रावक-श्राविकाओं ने सेवा का पूर्ण लाभ लिया ।
श्री जैन रत्न विद्यालय के स्वर्ण जयन्ती वर्ष के शुभारम्भ के उपलक्ष्य में नशाबंदी अभियान तथा धार्मिक शिक्षण के विकास को गति प्रदान की गई । २६ जनवरी को आचार्य श्री गणेशीलालजी महाराज की | स्वर्गारोहण तिथि मनाने के अवसर पर दोनों आचार्यों ने महान् आत्माओं के पद- चिह्नों पर चलकर जीवन सफल बनाने की प्रेरणा की। यहाँ से २८ जनवरी को आप हीरादेसर पधारे। लोढा एवं बोथरा परिवार ने सेवाभक्ति का लाभ लिया । यहाँ से विराई, विराणी, सेवकी आदि ग्रामों में धर्मोपदेश देते हुए जोधपुर पधारने पर पुनः उक्त आचार्यद्वय का सम्मेलन हुआ ।
पालासनी में दीक्षा
श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के तत्त्वावधान में माघ शुक्ला दशमी १७ फरवरी १९७८ को दीक्षार्थी श्री गौतमचन्द जी आबड़ (सुपुत्र श्री जांवतराजजी श्रीमती शान्तादेवीजी आबड़, पालासनी), विरक्ता सुश्री कौशल्या | देवीजी (सुपुत्री श्री पन्नालालजी कमलादेवी जी कटारिया, थाँवला) और सुश्री सोहनकंवरजी (सुपुत्री श्री उदारामजी | दाखीबाई भाटी, बारणी खुर्द) को पालासनी में आचार्यप्रवर द्वारा आजीवन सामायिक व्रत अंगीकार करा कर भागवती दीक्षा प्रदान की गई। बरगद की सघन छाया युक्त सभामंडप जय घोषों के नारों से गूंज उठा। इस अवसर पर प्राणिमित्र करुणामूर्ति, सतत स्वाध्यायी श्री डी. आर मेहता का अभिनंदन किया गया । धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं के उपलक्ष्य में श्री सोहननाथ जी मोदी तथा श्री सिरहमल जी नवलखा का बहुमान किया गया। जोधपुर में