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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
१७९ प्रदान की। कवि जी म.सा. ने नवदीक्षित मुनि का नाम चम्पक मुनि दिया। यहाँ आचार्य श्री एवं कवि अमरचन्दजी म.सा. के ज्ञान एवं क्रिया विषय पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्याख्यान हुए।
आचार्य श्री वापसी में भरतपुर से सेवर, पहरसर, डेहरा, मही, बरखेड़ा, वैर, भुसावर, सांथा, खावदा को पावन | कर नया गाँव होते हुए फाजिलाबाद पधारे। यहाँ पर कुन्दनमल जी, प्यारेलाल जी, प्रभुदयाल जी, रामदेव जी खावदा
और रामजीलाल जी ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया। यहाँ से विहार कर पूज्य प्रवर ने हिण्डौन, कजानीपुरा, रायपुर, वजीरपुर, सेवाग्राम, गंगापुर को पावन किया। फाल्गुनी पूर्णिमा पर आप गंगापुर विराजे । यहाँ आपकी प्रेरणा | से श्री प्रकाशचन्दजी भागचन्द जी के संयोजकत्व में स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन सम्पन्न हुआ । तदुपरान्त आप मच्छीपुरवाटोदा, बेहतेड़, चकेरी, श्यामपुरा, कुण्डेरा पधारे, जहाँ पंडित जगन्नाथजी ज्योतिषी से ज्योतिष || पर विचार-विमर्श किया। पण्डित जी ने आपके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर संस्कृत में एक पद्य समर्पित किया -
चातुर्यं चतुराननस्य निभृतं गाम्भीर्यमम्भोनिधे रौदार्यं विबुधद्रुमस्य मधुरां वाचं च वाचस्पतेः । धैर्य धर्मसुतस्य शर्म सकलं देवाधिपस्याहरत् ।
धीमान् ख्यातनयः सदा सविनय: श्रीहस्तिमल्न: सुधीः ।। यहाँ से चैत्रकृष्णा अमावस्या को आप सवाईमाधोपुर पधारे । संवत् २०३१ का शुभागमन सवाई माधोपुर में हुआ। • सवाईमाधोपुर में पोरवाल समाज की जागृति
सवाईमाधोपुर में आपके आगमन से वहाँ के पोरवाल समाज में जागृति की लहर आई। फलस्वरूप संगठित होकर घर-घर में नियमित सामूहिक प्रार्थना, स्वाध्याय एवं सामायिक की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई। ५० श्रावक स्वाध्याय-संघ के सदस्य बने, जिनमें से अधिकांश बाहरी क्षेत्रों में जाकर धर्माराधन कराने में सक्षम थे। करीब २० भाई-बहन १२ व्रती बने। महावीर जयन्ती के अवसर पर त्याग, तप और नियमों की झड़ी लग गई। वीरवाल, खटीक, गूजर, कोली आदि जातियों के लोगों ने शराब, मांस-सेवन एवं जीवहिंसा न करने के संकल्प लिए। यहाँ से विहार कर आलनपुर, कुस्तला, चोरू बिलोता, खातोली, समिधि, जरखोदा, देई, बांसी, राणीपुरा, दबलाणा होते हुए आप बूंदी पधारे । यहाँ कोटा, इन्दौर, सवाईमाधोपुर तथा सौराष्ट्र के श्री संघ द्वारा क्षेत्र स्पर्शन की विनति की गई। यहां डॉ. कल्याणमलजी लोढा ने आजीवन शीलवत अंगीकार किया तथा आगम साहित्य सेवा हेतु श्री गजसिंह जी राठौड़ का अभिनन्दन किया गया। चरितनायक ने कोटा प्रवास काल में संकल्प व्यक्त किया - ‘जहाँ चातुर्मास में नि:शुल्क सामूहिक भोजन की चौका पद्धति होगी, वहाँ मैं चातुर्मास नहीं करूँगा।” यह आचार्य प्रवर का युगानुकूल क्रान्तिकारी कदम था।
आप दूरदर्शी एवं चिन्तनशील साधक थे। आपने समझ लिया था कि अब आवागमन के साधनों की उपलब्धता बढ़ती जा रही है। अत: नि:शुल्क चौका प्रथा के रहते छोटे-छोटे क्षेत्र अपने यहाँ चातुर्मास कराने का साहस कैसे जुटा पायेंगे। करुणा सिन्धु पोरवाल क्षेत्र को वीतरागवाणी से उपकृत करना चाहते थे, अत: उनका संकल्प लोगों को अटपटा लगते हुए भी यह एक क्रान्तिकारी एवं समुचित कदम था। आचार्यप्रवर के इस संकल्प का परिणाम तत्काल ही सामने आया और सवाईमाधोपुर के श्रद्धालु-भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो गई । चातुर्मासार्थ उनकी भावभरी विनति स्वीकृत हो गई। ___कोटा छावनी में महासती छगनकुंवर जी ठाणा १२ से वंदन हेतु पधारी। पंजाबी महासती श्री )