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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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आत्मा हूँ। मैं तो रोग व शोक से सर्वथा परे हूँ। शुद्ध स्वरूपी आतम राम । रोग रहित मैं हूँ निष्काम। ये रोग और | शोक भला मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं।” “रोग शोक नहीं देते मुझे जरा मात्र भी त्रास, सदा शान्तिमय मैं हूँ, मेरा | अचल रूप है खास " इस अध्यात्म चिन्तन से तुरन्त लाभ हुआ व चरितनायक स्वस्थ हो गये । चरितनायक के गायक | भक्त दौलतरूपचन्दजी भण्डारी एवं विद्वान् स्वाध्यायी पारसमलजी प्रसून भोपालगढ ने यहाँ भी अपने गायन का प्रभाव छोड़ा । चातुर्मास में सदार शीलव्रत के अनेक प्रत्याख्यान हुए। बाहर से कई प्रमुख श्रावक-श्राविकाओं का आगमन हुआ । यहाँ सामायिक - स्वाध्याय का अच्छा प्रचार हुआ। पूनमचंद जी बरडिया जैसे अनेक श्रावकों ने इस | चातुर्मास में सक्रिय सेवा का लाभ लिया । चातुर्मासकाल में लगभग १२०० अठाई तप हुए। स्वधर्मी वात्सल्य का लाभ लालभाई ने लिया ।
अहमदाबाद में विविध प्रकार की सत्प्रवृत्तियों में वि.सं. २०२३ का वर्षावास व्यतीत कर चरितनायक ठाणा ७ | से मार्गशीर्ष कृष्णा एकम को साबरमती होते हुए जब सरसपुर पधारे तो पूज्य श्री घासीलाल जी म.सा. आपका | सम्मान एवं स्नेह व्यक्त करने हेतु द्वार तक पधारे और प्रार्थना के पश्चात् दो शब्द व्यक्त करते हुए चरितनायक को | कल्पवृक्ष की उपमा देकर अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की । पालड़ी, सरखेज (आचार्य श्री धर्मदासजी म.सा. की जन्म भूमि), नड़ियाद, आणंद, वासद एवं छाणी होते हुए आपने बड़ौदा की ओर विहार किया । छाणी में आपका || प्रेमविजयसूरिजी से मधुर मिलन हुआ ।
आपने बड़ौदा में श्री आत्माराम जैन ज्ञानमन्दिर में कान्तिविजयजी और हंसविजय जी के शास्त्र संग्रह का | अवलोकन किया, जिसमें करीब ८००० हस्तलिखित ग्रन्थ थे । नरसीजी की पोल के सामने स्थित इस ज्ञानमन्दिर की | प्रथम मंजिल में मुद्रित ग्रंथ और ऊपरी मंजिल में ताडपत्र एवं कर्गल लेख हैं । कुल ६५ ताडपत्र प्रतियाँ तथा नक्शे, | चित्रपट और सुवर्णाक्षरी कल्पसूत्र आदि भी हैं । सूचीपत्र स्पष्ट एवं लेखनकाल सहित उपलब्ध हैं । वहाँ पर स्थित प्राच्य विद्या मन्दिर में आपने तीन दिन पधारकर विभिन्न ग्रन्थों का निरीक्षण किया । इस पुस्तकालय में जैन ग्रन्थ हजारों की संख्या में हैं। कहते हैं कि दस हजार प्रतियाँ इस विद्यामन्दिर को यति श्री हेमचन्द जी ने दी है। यहां आपने स्थानकवासी तेजसिंह गणी जी की कई रचनाएँ देखी एवं १७ प्रशस्तियों का लेखन किया ।
आप बड़ौदा में १५ दिन विराजकर छाणी, वासद आदि ग्रामों को फरसकर २६ जनवरी को प्रांतीज पधारे | जहाँ धार्मिक पाठशाला प्रारंभ हुई । मास्टर चंदूलाल जी ने शाला में शिक्षण प्रारंभ किया । गणतन्त्र दिवस के दिन श्रावकों की संख्या उत्साहजनक थी । यहाँ बुद्धिसागरसूरि जैन ज्ञानमन्दिर का अवलोकन करते समय आपने | आर्यामहाकंवर का निरयावलिका सूत्र सं. १७७९ का लिखा हुआ देखा। यहां आपने ढुंढकरास का अध्ययन कर उसका सार लिखा। गुजरात में ज्ञान भण्डारों से इतिहास विषयक सामग्री मिली। अध्यात्मरसिक एवं आत्मलक्ष्यी सन्त होते हुए भी इतिहास में आपकी गहन रुचि थी । हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत के साथ प्राचीन भाषा एवं लिपि के आप विशेषज्ञ थे । इस प्रवास में आपने 'जैनाचार्य चरितावली' का पद्यबद्ध लेखन किया एवं जैनधर्म का मौलिक इतिहास प्रस्तुत करने हेतु आपके प्रयासों को बल मिला।