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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १५५ संवेगी साधुओं से स्नेह वार्ता हुई। सामायिक संघ के संयोजक श्री चुन्नीलाल जी ललवाणी ने एक दिन व्याख्यान में सामायिक संघ का परिचय दिया। यहाँ पर चरितनायक द्वारा ताडपत्रीय भण्डार का अवलोकन भी किया गया। चरितनायक जहाँ भी पधारते उस ग्राम-नगर के ज्ञान-भण्डार का अवलोकन किए बिना नहीं रहते । साहित्य एवं ज्ञान के प्रति आपकी लगन अनुपम थी। कान्ति ऋषि जी ने आपकी प्रेरणा से लेखन का अभ्यास प्रारम्भ किया। स्वाध्यायियों को शान्ति सैनिक की संज्ञा देते हुए आपने स्वाध्याय मण्डल के गठन की प्रेरणा की। पं. दलसुख भाई मालवणिया चरितनायक के दर्शनार्थ पधारे । जैन दर्शन पर ज्ञान-चर्चा खम्भात का अविस्मरणीय प्रसंग रहा। आपने उनके साथ सीमन्धर और स्तम्भन पार्श्वनाथ के प्राचीन मन्दिर की कलाकृति देखी एवं नयी शाला में शिक्षार्थियों को पढाते हुए सन्तों से मिले। चरितनायक ने खम्भात प्रवास के दौरान यहाँ की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए लिखा है -"धर्मशासन में शिथिलता का इतना प्राबल्य है कि शीघ्र ही किसी महापुरुष को क्रान्ति करनी पड़े। महिमा-पूजा का रोग फैल चुका है। " प्रेम सूरि शिक्षायतन में छात्रों को सम्बोधित करते हुए आपने फरमाया कि अर्थ से अधिक धर्म को महत्त्व देना चाहिए। भरत का उदाहरण देते हुए फरमाया कि वह चक्ररत्न को छोड़कर प्रभुवन्दन को गया। आपश्री खम्भात में लगभग एक माह विराजे । खम्भात से विहार कर आप अगास आश्रम आए। यहाँ पूज्यपाद ने उपदेश माला और उपदेश तरंगिणी पुस्तकों का वाचन किया। वहाँ से आप आणंद में वीरवाणी का प्रचार करते हुए नडियाद, संधाणा, वारेजा, बटेवा, मणिनगर होते हुए छीपापोल पधारे, जहाँ इतिहास कार्य के लिए स्थानीय सहकार की प्रेरणा दी। • अहमदाबाद चातुर्मास (संवत् २०२३) यहाँ से आपने स्थानकवासी सोसायटी होते हुए विक्रम संवत् २०२३ के चातुर्मास हेतु आषाढ शुक्ला ६ शुक्रवार २४ जून १९६६ को आश्रम भवन में प्रवेश किया। यहाँ आपकी पं. सुखलाल जी संघवी से ज्ञान चर्चा हुई। चातुर्मास में पं. रूपेन्द्र कुमार पगारिया ने सेवा का लाभ लिया। एक दिन आप लाल भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर का अवलोकन करने पधारे, जहाँ आपका प्राकृत एवं जैनदर्शन के विद्वान् पं. बेचरदास जी एवं पं. दलसुख भाई मालवणिया से इतिहास संशोधन के सम्बंध में विचार-विमर्श हुआ। चरितनायक ने उत्तराध्ययन, प्रश्नव्याकरण और भगवती सूत्र से मुँहपत्ती के प्रमाण भी दिये। यहाँ पर ही २८ जुलाई १९६६ को आपने सम्वत्सरी पर्व के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए फरमाया - “आज हम भगवान महावीर की ज्ञाननिधि के बल से ही अपना जीवन निर्माण करते हुए अपने आचार और विचार में प्रकाश पाते हैं। आगम में कुछ बातों पर यानी मुक्ति-मार्ग पर स्पष्ट उजाला है , जैसे प्रकाश में पहाड़ स्पष्ट दिखाई देता है। कुछ बातें ऐसी भी हैं, जिन पर स्पष्ट रूप नहीं है। जिस बाबत खुली दिशा प्रकट नहीं की गई वहाँ आचार्य का जीत व्यवहार ही उनके विचारों का निर्णय कहलाता है, जिन्होंने प्राचीन परम्परा को लेकर विचारों को सुलझाया है, वही निधि लेकर संघ आज तक चल रहा है।" यहाँ पर आपका श्री जिनविजय जी से इतिहास के परिचय और परामर्श पर वार्तालाप हुआ और लोंकागच्छ | से सम्बंधित सामग्री प्राप्त हुई। चातुर्मास में पट्टावली का मिलान व सिद्धान्त शतक का अर्थ आदि लेखन-पठन का बहुत काम हुआ। यहां आपने गुजरात विद्यापीठ के संग्रह से योगशास्त्र की पुस्तकें देखी। उत्तराध्ययन चूर्णि का वाचन किया। चातुर्मास में एक दिन आपको सिर में भारीपन व छाती पर दर्द का असर अनुभव हुआ तो भेदविज्ञान ज्ञाता, उन महापुरुष ने यह चिन्तन किया-“मैं यह शरीर नहीं, मैं तो इसमें अवस्थित चिदानन्द स्वरूप
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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