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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं म.सा. ने भी आपसे कई धारणाएं की। पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. ने भी वैराग्यावस्था में पीपाड़, अजमेर | तथा पुष्कर में आपसे स्तोकों का ज्ञान किया था। महासती जी ने सहजभाव से अनेक सन्त-सतियों को अपने ज्ञान से लाभान्वित किया। अन्त में नेत्र ज्योति चली जाने से आप पीपाड़ में स्थिरवास विराज रहे थे। मस्से आदि की तकलीफ होते हुये भी आपने शान्ति एवं समाधि भावों को स्थिर रखा। आपका ४० वर्षीय संयमी-जीवन कई सन्त-सतियों के लिये प्रेरणास्रोत था।
यहाँ से मंडोर, तिंवरी, मथानिया बावड़ी फरसते हुए भोपालगढ़ पधारे। श्री जैन रत्न विद्यालय के वार्षिक अधिवेशन पर शिक्षा सम्बंधी विशिष्ट कार्यक्रम आयोजित किये गए। वहाँ से रतकूडिया, खांगटा, कोसाणा, रणसीगांव फरसते हुए पीपाड़ पधारे । स्वामी श्री सुजानमलजी म.सा. के घुटने की पीड़ा और मुनि श्री अमरचन्द जी म.सा. की जंघा में अमर बकरे के सींग के आघात के कारण आपको कुछ समय पीपाड में विराजना पडा। रीयां. पालासनी (होली चातुर्मास) एवं पाली प्रवास हुआ। पाली में आचार्यश्री गणेशीलाल जी महाराज और चरितनायक का श्री शान्ति जैन पाठशाला के भवन में स्नेह सम्मेलन हुआ। संघाभ्युदय, समाजोत्थान और पारस्परिक सहयोग आदि अनेक विषयों पर आचार्यद्वय ने खुले दिल से विचारों का आदान-प्रदान किया। दूर-दूर के दर्शनार्थियों का मेला सा लग गया।
आचार्यद्वय के मधुर मिलन के सुखद प्रसंग पर भोपालगढ के सुज्ञ श्रावक श्री जोगीदास जी बाफना, श्री सूरजराजजी बोथरा आदि श्रावकों ने भोपालगढ़ चातुर्मास हेतु भावभरी विनति एवं प्रबल आग्रह करते हुए प्रार्थना की कि वयोवृद्धा महासती श्री बड़े धनकँवरजी अस्वस्थता के कारण भोपालगढ विराजमान हैं उनकी भी यही भावना | है। आचार्य श्री ने स्वामीजी महाराज से परामर्श कर विनति स्वीकार की। • भोपालगढ चातुर्मास (संवत् २००३)
शेषकाल में पाली से सोजत पदार्पण के पश्चात् आचार्य श्री गणेशीलालजी म.सा. से पुनर्मिलन हुआ। आप श्री यहां से बिलाडा होकर पीपाड़ पधारे। कुड़ी ग्राम को फरसते हुए आचार्य श्री संवत् २००३ के चातुर्मासार्थ भोपालगढ पधारे। प्रवेश के समय विद्यालय के छात्रों एवं श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा उच्चारित जय जयकार के | समवेत स्वरों का दृश्य अनुपम था। सारा गांव आपके दर्शनों को उमड़ पड़ा।
भोपालगढ़ के शान्त ग्रामीण वातावरण में श्रुत-शास्त्रों का गहन अध्ययन एवं अवगाहन करते हुए आपने गणिपिटक के द्वितीय अंग सूत्रकृत का मूल, व्याख्या, टीका और अनुवाद सहित सम्पादन प्रारम्भ किया। इस चातुर्मास में ग्रामवासियों व आगन्तुकों ने ज्ञानाभ्यास व तप-त्याग का भरपूर लाभ लिया। ___ आचार्य श्री का विहार कुडची, धनारी, थली के अनेक ग्रामों में धर्मोद्योत करते हुए बीकानेर की ओर | गोगोलाव तक हुआ । इधर बारणी निवासी रिडमलचन्द जी भण्डारी की दो पुत्रियों की इच्छा बहुत दिनों से दीक्षा | लेने की थी। उनके माता-पिता तथा दादा आदि परिजन दीक्षा बारणी में कराना चाहते थे। अत: उनके दादा वजीरचन्द जी भण्डारी और किशोरमलजी मेहता दीक्षा का मुहूर्त निकलवाकर आचार्य श्री की सेवा में नागौर पहुंचे। विशेष आग्रह किया कि बारनी पधार कर दीक्षा प्रदान करावें। भण्डारी जी की विनति पर बीकानेर का प्रयाण स्थगित रखकर आचार्य श्री गोगोलाव से पुन: नागौर मुण्डवा खजवाणा , रूण, गारासनी असावरी होते हुए बारणी पधारे।