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अजमेर साधु-सम्मेलन में भूमिका
(संवत् १९९०)
अखिल भारतीय जैन कान्फ्रेंस ने समग्र भारत की बाईस सम्प्रदायों के नाम से विख्यात स्थानकवासी साधुओं का एक बृहत् सम्मेलन अजमेर नगर में चैत्र शुक्ला १० संवत् १९९० तदनुसार ५ अप्रेल १९३३ से आयोजित करने का निश्चय किया। समाज के वयोवृद्ध श्रावक प्रमुख-मुनियों से सम्पर्क कर एक भूमिका तैयार करने में संलग्न थे। आचार्य श्री की सेवा में भी कान्फ्रेन्स का शिष्ट मण्डल रतलाम पहुँचा। शिष्ट मण्डल की प्रार्थना एवं मुनि संघ के हित की भावना से आप श्री का भी विहार इस लक्ष्य से मालवा से राजस्थान की ओर हुआ। सैलाना, खाचरोद, पीपलोदा होते हुए आप प्रतापगढ़ पधारे। यहाँ ऋषि सम्प्रदाय के प्रमुख संत श्री आनंद ऋषि जी म.सा. जो कि आगे चलकर श्रमण संघ के आचार्य बने, से आपका मधुर मिलन हुआ, जिससे पारस्परिक सौहार्द में अभिवृद्धि हुई। आचार्य श्री क्रमशः छोटी सादड़ी, निम्बाहेड़ा एवं चित्तौड़ पधारे और अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन और संकलन किया। हमीरगढ़ आदि क्षेत्रों में अलख जगाते हुए आचार्य श्री भीलवाड़ा पधारे और भव्यात्माओं को अध्यात्म का रसास्वाद कराते हुए बनेड़ा पहुंचे। बनेड़ा से केकड़ी पधारे जहाँ अन्यपक्षीय श्रावकों के साथ ऐतिहासिक शास्त्रार्थ हुआ। १६ फरवरी १९३९ से एक सप्ताह तक मूर्तिपूजक समाज के साथ चले लिखित | शास्त्रार्थ में आपने प्रांजल संस्कृत भाषा में सटीक समीचीन एवं पाण्डित्यपूर्ण समाधान दिए, जिससे शास्त्रार्थ निर्णायक कट्टर मूर्तिपूजक पण्डित श्री मूलचन्दजी शास्त्री अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने निर्णय दिया कि आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के उत्तर जैन धर्म की दृष्टि से बहुत सटीक एवं समुचित हैं। इस शास्त्रार्थ के पश्चात् केकडी के दिगम्बर एवं श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय का जोश ठंडा पड़ गया और स्थानकवासी सन्त-सतियों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारना बन्द हो गया। इस शास्त्रार्थ में स्थानीय मन्त्री श्री धनराजजी नाहटा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। शास्त्रार्थ में हुई विजय से आपकी यशकीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। यहाँ धनराजजी नाहटा, चाँदमलजी, सूरजमल जी आदि तरुणों में बड़ा उत्साह था। सरवाड़ की भावभीनी विनति को ध्यान में रखकर आचार्यश्री वहाँ पधारे । यहाँ श्री साईणसिंहजी, श्री ताराचन्दजी कक्कड़ आदि ने सेवा का पूरा लाभ लिया। धर्म-प्रचार और संगठन के लिए आचार्यश्री की प्रेरणा से यहाँ नियमित प्रार्थना और धार्मिक शिक्षण का कार्य प्रारम्भ हुआ। सरवाड़ आदि क्षेत्रों से होते हुए किशनगढ़ आगमन हुआ। तत्र विराजित प्रवर्तक श्री पन्नालाल जी म.सा. ने आचार्यश्री की अत्यन्त भावविभोर होकर अगवानी की। प्रवर्तक श्री आपकी लघुवय में ज्ञान-ध्यान की प्रखरता एवं तेजस्विता देखकर अभिभूत हो उठे। पंजाब केसरी युवाचार्य श्री काशीरामजी महाराज, प्रवर्तक पूज्य श्री पन्नालालजी म. के साथ आचार्यश्री के स्नेह मिलन की त्रिवेणी को देखकर किशनगढ़ संघ आनंद विभोर हो उठा। प्रमुख सन्तों में अजमेर में होने वाले वृहद् साधु सम्मेलन के सम्बंध में विचार विनिमय हुआ। सम्मेलन में सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व किनको दिया जाए यह निर्णय करने एवं खास-खास बातों में परम्परा की भूमिका रखने के सम्बन्ध में स्थविर मुनियों एवं आचार्य श्री की सन्निधि में सब सन्तों से विचार विमर्श हुआ। ____ आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. के आगमन की सूचना पाकर चरितनायक अपने साधुवृन्द के साथ लीड़ी)