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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं | मनीषियों को अपनी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित और मुग्ध करने लगे।
पीपाड़ नगर के चातुर्मास में चरितनायक के व्याख्यानों तथा विशुद्ध श्रमणाचार के पालन से पीपाड़ निवासी अत्यंत प्रमुदित और गौरवान्वित हो रहे थे। चरितनायक के शास्त्रीय व्याख्यान ओजस्वी वाणी के साथ सबको प्रेरणाप्रद लग रहे थे। उनकी प्रत्येक क्रिया की शुद्धता एवं व्यवहार की प्रभावशालिता सबके लिए प्रिय बनती जा रही थी। वे दूसरों को भी अपना बनाने में निष्णात हो गए थे तथा क्रोधी, आवेशी एवं दुर्भावना-ग्रस्त को भी शान्त वाणी एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व से निरुत्तर करने में सक्षम हो गए थे। जैन-अजैन सभी उनसे प्रभावित थे। रामद्वारा के सन्त सीताराम जी भी उनकी सेवा में आया करते थे।
एक दिन राता उपासरा में अध्ययनरत मुनि श्री के पास एक सज्जन आए और बिना प्रसंग के ही बोले-“तुम्हारे पिताजी तो मंदिर की भजनमंदली में अच्छा भाग लेते थे।" इसके आगे वे कुछ बोलें इसके पूर्व ही स्मितमुद्रा में बांठिया जी की ओर दृष्टिपात करते हुए प्रत्युत्पन्नमति चरितनायक ने उनकी व्यंग्योक्ति का तत्काल उत्तर देते हुए कहा-"विज्ञ श्रावक जी! यदि पिता खारा पानी पीवे तो क्या पुत्र को भी खारा पानी ही पीना चाहिए?" बांठिया जी हतप्रभ हो, लौट गए।
खरतरगच्छ के यति श्री चतुरसागर जी म. भी चरितनायक की विलक्षण मेधा-शक्ति से अत्यंत प्रभावित थे और उनका आदर करते थे। भोजराजजी म.सा. के सान्निध्य में अध्ययन-कार्य भी निर्विघ्न रूप से चलता रहा। पीपाड़ चातुर्मास की समाप्ति पर संघ के नरनारियों ने विदाई गीतों और धार्मिक उद्घोषों के बीच मुनिमंडल को तालाब के समीपवर्ती बगीची तक पहुंचा कर अश्रु भरे नयनों से भाव भीनी विदाई दी। उसके पश्चात् रीयां में पुन: अध्ययन का | क्रम चला।
चातुर्मास के पश्चात् थांवला में श्री चुन्नीलालजी आबड़ की सुपुत्री चूना जी की आपकी अनुज्ञा से महासती श्री भीमकंवरजी के द्वारा मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई। • श्री सागरमुनि जी म.सा.का अद्वितीय संथारा
चातुर्मास के पश्चात् चरितनायक आस-पास के क्षेत्रों में विचरते रहे। स्वामी जी भोजराज जी महाराज के दर्शन कर श्री लाभचन्दजी म. एवं श्री सागरमुनि जी म. पुनः अजमेर पधारे। वहां मुनि श्री सागरमल जी म. अस्वस्थ हो गए। उनकी पाचन नली में खराबी होने से आंते फूल जाती और उनकी अन्न के प्रति रुचि कम हो गई। श्रावकजनों ने उपचार के लिए प्रार्थना की, परन्तु मुनि श्री ने अपने गुरुदेव पूज्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के स्वर्गारोहण के पश्चात् दवा मात्र का त्याग कर दिया था। यहाँ तक कि सोंठ, लवंग आदि घरेलू उपचार की वस्तुएं भी उन्हें स्वीकार्य नहीं थी। साथ में विराजित श्री लाभचन्द जी महाराज के समझाने पर भी मुनि श्री ने यही कहा-'मुझे अन्न नहीं लेना। जब पेट खाने से कष्ट पाता है तो खाना छोड़ना ही मेरे लिए हितकर है।' ___मुनि श्री के स्वास्थ्य के समाचार चरितनायक एवं स्वामीजी सुजानमल जी महाराज की सेवा में भी पहुंचे। समाचार मिलते ही स्वामीजी भोजराज जी ने अजमेर की ओर विहार कर दिया। जोधपुर से सेवाभावी श्रावक श्री चन्दनमलजी मुथा आदि भी पहुंचे। तब तक मुनि श्री सागरमलजी म. किशनगढ़ पधार गए और वहां उन्होंने उपवास चालू कर दिया। स्वामीजी श्री भोजराजजी महाराज ने मुनि श्री की परिस्थिति देख सारी सूचना बाबाजी श्री सुजानमलजी महाराज एवं चरितनायक को करायी, जो उस समय रीया विराज रहे थे। खबर मिलते ही वे रीया से