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१७२ : Aarle सयामा पाता विभागमा रापेक्षा मने मेरी on किये है। इनकी लेखनी मधुर, सरल व चित्ताकर्षक थी। तभनी 2ी वातमिान कि भगेला. २२. पशु जैन समाज ही नहीं गुजराती लेखकों में इनका छटनी वार्तामा ५ गुती यि पाभी ती. एक अग्रणीय स्थान था। इनका अध्ययन श्री वीरसत्य પરંતુ આવા પ્રયત્નો વિરતૃત રીતે થવા જોઈએ.
प्रकाशक मन्डल शिवपुरी में हुआ था। शिवपुरी छोडने मा निर्माता मा प्रानु २१त्व भभव हवे के बाद इन्होंने अपना कार्यक्षेत्र अहमदाबाद बना लिया तुणवता थायमेट छ. मेवी सहशुद्धि भने हिमत था। अभी दो वर्ष पहेले इनका सम्मान के रूप में તેમને પ્રાપ્ત થાવ એજ ખેવના.
अहमदाबादमें षष्टि पूर्ति समारोह मनाया गया था। यित्रता इनकी आयु ६२ वर्ष की थी। इनके अवसान से जैन
समाज में एक अच्छे सुसंस्कारी, विद्वान, साहित्यिक व पत्रकार की बहुत बड़ी कमी हुई है जिसकी निकट
भविष्य में क्षतिपूर्ति होना अत्यन्त कठिन है।। एक दुःखद समाचार
श्री शासन देवगत आत्मा को शांति व उनके यह समाचार लिखते हुए अत्यंत दुख होता है परिवार को इस महान् दुःख को सहन करने कि शक्ति कि अहमदाबाद में दि० २४-१२-६९की संध्या को प्रदान करें। ५ बजे गुजरात के लोकप्रिय साहित्यकार श्री बालाभाई
-राजमल लोढ़ा वीरचंद देसाई उर्फ ' जयभिक्खुजी'का हार्ट फेल हो जाने
(शाश्वत धर्म' से स्वर्गवास होगया। आपके वियोग से जैन समाज को काफी आघात पहुंचा है। प्रभु से प्रार्थना है कि स्वर्गस्थ आत्मा को शांति एवं उनके भाई श्री रतिलाल हमें यह सूचित करते हुये अत्यन्त दुःख हो रहा दीपचंद देसाई आदि परिवारीजनों को धैर्य प्राप्त हो। है कि गुजरात के सुप्रसिद्ध साहित्यकार तथा जैनदेसाई परिवार पर आये हुए इस महान दु:ख में हम कथा साहित्य के प्रख्यात लेखक श्री बालाभाई वीरचंद भी समवेदना प्रकट करते हैं।
देसाई का दिल के दौरे से २४-१२-६९ बुधवार को -श्वेतांवर जैन
अवसान हुआ। जो " जयभिक्खु" के नाम से प्रसिद्ध थे और जिन्होंने अबतक ३०० से अधिक पुस्तकें लिखी जिसमें से कई कृतियों पर सरकार की ओर से पुरस्कार भी मिला था।
भाई " जयभिक्खु" ने भले ही अपने साहित्य में अहमदाबाद ।
प्राचीन जैन साहित्य के आधार पर कथाए, उपन्यास गुजरात प्रांत के साहित्यिक व पत्रकार श्री बालाभाई तथा चरित्र लिखे हों पर वे गुजराती के गणमान्य वीरचन्द देसाई जो कि जयभिक्खु के नामसे सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनके लेखनमें साम्प्रदायिकता या धर्म थे। जिन्होंने अपने जीवन में कई सुप्रसिद्ध पुस्तकों का का विशिष्ट अभिनिवेश न होकर एसी व्यापकता थी नव निर्माण किया है, पत्रों के अन्दर कई वैचारिक, कि उनका साहित्य जैनेतरों को भी प्रिय था। सामाजिक व धार्मिक लेखों को समय पर जनता के उनकी उच्च शिक्षा स्व. शास्त्र विशारद विजयसामने प्रस्तुत किया है।
धर्मसूरिजी की प्रेरणा से वीर तत्त्व प्रकाशक मण्डल में इनको अपनी साहित्यिक सेवा के सम्मान स्वरुप हुई और जब उस संस्था का स्थानान्तर बनारस, भारत सरकारने कई बार राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान आगरा होकर शिवपुरी में हुआ तो उनका गुजराती के
जयभिक्खु का निधन