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________________ (७२)-.....---- वेदों का पूर्ण ज्ञान था। वेन कुमार की समस्त दण्डनीति का उसे स्वतः ही ज्ञान प्राप्त हो गया। उसने हाथ जोड़कर सभी महर्षियों से कहा कि धर्म और अर्थ का दर्शन कराने वाली अत्यन्त सूक्ष्म बुद्धि मुझे प्राप्त हुई है, मुझे इस बुद्धि का क्या उपयोग करना चाहिए ? बताइये । तब महर्षियों ने कहा कि जिस कार्य में नियमपूर्वक धर्म की सिद्धि होती हैं, उसे निर्भय होकर करो। समस्त प्राणियों के प्रति समभाव रखो। जो व्यक्ति धर्म से विचलित होता हो उसे अपने बाहुबल से परास्त कर दण्ड दो। इसके साथ ही यह प्रतिज्ञा करो कि मैं मन, वचन, काया से ब्रह्म (वेद) का निरन्तर पालन करूँगा। वेनकुमार ने इस प्रकार प्रतिज्ञा की, फिर शुक्राचार्य उनके पुरोहित बनाये गये, जो वैदिक ज्ञान के भण्डार थे। तत्पश्चात् विष्णु, देवताओं सहित इन्द्र, ऋषि समह, प्रजापतिगण तथा ब्राह्मणों ने पृथु का (वेनकुमार) राजपद पर अधिषेक किया।' उपर्युक्त दोनों ही सिद्धान्त इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि राजा की उत्पत्ति से पूर्व समाज में अव्यवस्था तथा अराजकता व्याप्त थी। लोभ, मोह, काम, राग आदि प्रवृत्तियों ने उग्र रूप ले लिया था। जिसके फलस्वरूप प्रजा बहुत दु:खी हुई, और अंत में परमेश्वर-नियुक्त राजा द्वारा ही समाज में शान्ति स्थापित हो सकी। इस प्रकार महाभारत में सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्त का बड़े विस्तार से वर्णन किया गया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्त का वर्णन मिलता है। अर्थशास्त्र में इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है कि जब प्रजा मत्स्य-न्याय से पीड़ित हुई तब उन्होंने मन को अपना राजा बनाया। राजा की सेवाओं के बदले में उन्होंने सुवर्ण आदि का दसवां भाग तथा धान्य का छठा भाग कर के रूप में देने का निर्णय किया। इसके उपरान्त मनु ने प्रजा की रक्षा का उत्तरदायित्त्व अपने ऊपर ले लिया। महाभारत आदि में ब्रह्मा द्वारा राजा की नियुक्ति का वर्णन है, किंतु कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजा की नियुक्ति ब्रह्मा या विष्णु द्वारा नहीं, अपितु इस प्रकार का वर्णन मिलता है कि प्रजा ने स्वयं राजा का निर्वाचन किया था। १. महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय ५६, श्लो० ८७-११५. २. कौटिल्य अर्थशास्त्र १/१३ पृ० ३५ ३. वही
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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