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________________ ११. पुरोहित-रत्न : यह ज्योतिष शास्त्र, स्वप्न शास्त्र, निमित्त - शास्त्र, लक्षण और व्यंजन आदि का पूर्ण ज्ञाता होता था । देवी उपक्रमों को शान्त करता था । ( ६५ ) १२. स्त्री-रत्न : यह सर्वांग सुन्दरी होती थी । सर्दी युवती ही बनी रहती थी । इसके तीव्र भोगावली कर्म का उदय होता था । इसके प्रति चक्रवर्ती का अत्यधिक राग होता था । १३. अश्व रत्न : यह श्रेष्ट अश्व एक क्षण में सौ योजन लॉघ जाने की शक्ति रखता था । कीचड़, जल, पहाड़, गुफा आदि बिषम स्थलों को सहज पार कर जाता था । भरत चक्रवर्ती के अश्व रत्न का नाम " कमलापीड" था । १४. हस्ति- रत्न : यह ऐरावत हाथी की तरह सर्वगुण सम्पन्न होता था । उपर्युक्त प्रत्येक रत्न के एक-एक हजार देव रक्षक होते थे । अर्थात् चौदह रत्नों के चौदह हजार देवता रक्षक थे । वैदिक साहित्य में चौदह रत्नों के नाम प्राप्त होते हैं । १. हाथी, २. घोड़ा, ३. रथ, ४. स्त्री, ५. बाण, ६. भण्डार, ७. माला, ८. वस्त्र, ६. वृक्ष, १०. शक्ति. ११. पाश, १२. मणि, १३. छत्र, और १४. विमान । चक्रवर्ती की नव-निधियाँ : सम्राट भरत के पास नव-निधियाँ थीं, जिनसे वे मनोवांछित वस्तुएँ प्राप्त करते थे । निधि का अर्थ खजाना है । आचार्य अभयदेव के अनुसार चक्रवर्ती को अपने राज्य के लिए उपयोगी सभी वस्तुओं की प्राप्ति इन नव-निधियों द्वारा ही होती थी । इसलिए इन्हें नवविधान के रूप में गिनाया है । यह नव-निधियाँ निम्न प्रकार की हैं । ...
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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