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________________ (५२) के अनेक युगल थे।' कालान्तर में प्रकृति-परिवर्तन से प्राकृतिक साधनों का ह्रास होने के कारण राजनैतिक समाज की स्थापना हुई। दुःख एवं विपत्तियों से प्रजा के रक्षणार्थ चौदह कलकरों का समयसमय पर जन्म हुआ। ये चौदह कुलकर प्रजा के पितातुल्य थे। महापुराण में वर्णित है कि कर्म-भूमि से पूर्व भोग-भूमि थी, उसमें दुष्टों को दण्ड देने और सज्जनों की रक्षा का प्रश्न ही उपस्थित नहीं था। भोग-भूमि के पश्चात् जब कर्म-भूमि का प्रादुर्भाव हुआ, उस समय राजा का अभाव होने के कारण प्रजा में मत्स्य-न्याय पनपने लगा । जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को निगल जाती हैं, उसी प्रकार सबल व्यक्ति निर्बलों को कष्ट पहुँचाने लगे। जैन पुराणों के समकालीन वसुबन्धु जैसे आचार्यों ने भी इसी प्रकार विचार व्यक्त कर उपर्युक्त मत की पुष्टि की १. पापुराण : रविषेण, काशी : भारतीय ज्ञानपीठ १६४४, ३/३०-८८, हरिवंशपुराण : जिनसेन सम्पा० पन्नालाल जैन, काशी : भारतीय ज्ञानपीठ १९४४, ७/१६६-१७०, महापुराण : ३/१२२-१६३, तुलनीय : नैवं राज्यं न राजासीन्न च दण्डोन दाण्डीकः । धर्मेणव प्रजा : सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् ।। - ५९/१४. महाभारत शान्तिपर्व: २. अपकालन्त्यो हानि तेष यातेष्वनु क्रमात् । कल्पपाद पखण्डेषु श्रुणु कोलकरी स्थितिम् ।। पद्म पु० ३/७४. ३. महा पु० ३/६३-१६३, हरिवंश पु० ७/१२५-१७६. पर पु० ३/७५-८८. ४. दुष्टानां निग्रहः शिष्ट प्रतिपालनमित्ययम् । न पुरासीत्क्रमों यस्मात् प्रजाः सर्वा निरागसः ॥ प्रजादण्ड धराभावे मात्स्यं न्यायं श्रयन्त्यूमः । प्रस्यतेऽन्तः पदुष्टेन निर्वलोहिवलीयसा ॥ महा पु० १६/२५१-५२.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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