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________________ चतुर्थ अध्याय "राज्य एवं राजा" (क) “राज्य का स्वरूप" - - - १. राज्य को उत्पत्ति : भारत में राजसत्ता बहुत आवश्यक है। लेकिन हमारा देश एक ऐसा भी समय बिता चुका है, जिसमें “शासन पद्धति" का सर्वथा अभाव था। महाभारत और दीपनिकाय में सृष्टि के आदिकाल में स्वर्ण-युग की कल्पना का उल्लेख है । यूनानी एवं फ्रांसीसी विद्वान प्लेटो तथा रूसो ने भी आदिम काल में स्वर्णयुग की परिकल्पना की है।' जैन पुराणों में भी सष्टि के प्रारम्भ में स्वर्णयुग का उल्लेख आया है। उस काल में राज्य का आविर्भाव नहीं हुआ था, तथा प्रजा पूर्ण रूप से सुखी थी। कल्पवृक्षों द्वारा व्यवस्था नियन्त्रित होती थी। कालान्तर में मांग को अपूर्ति पूर्णतः न होने के कारण व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न हो गया था। इसके निवारणार्थ कुलकर उत्पन्न हुए और मनुष्यों ने इनसे उभयपक्षीय समझौता किया । जैन पुराणों में राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौते पर अधिक बल दिया गया है। जैन मान्यतानुसार राज्य देवी संस्था न होकर मानवीय संस्था थी। इसका निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा आपसी समझौते के आधार पर हुआ। आदिकाल में यौगलिक व्यवस्था थी। एक युगल जन्म लेता था और वही युगल दूसरे युगल को जन्म देने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। इस प्रकार १. अल्तेकर : प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, प० २१. २. धन्यकुमार राजेशः "जन- पोसणिक साहित्य में राजनीति" : श्रमण वर्ण २३ अंक २, नम्बर १९७३ पृ० ३-४
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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