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(३०) ५. आवश्यक चूर्णी :
जिनदासगणिमहत्तर का नाम चूर्णीकार के रूप में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके द्वारा ८ चूणियों की रचना हुई है । आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक व्याख्या नियुक्तियों और भाष्यों के रूप में प्रसिद्ध है। वे सब प्राकृत में हैं। जैन आगमों पर प्राकृत अथवा संस्कृत मिश्रित प्राकृत गद्य में जो व्याख्याएँ लिखी गई हैं, वे चूर्णियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। आठ चूणियों में आवश्यक चूर्णा का चौथा नम्बर आता है। इसकी रचना समय छठी शताब्दी माना जाता है।
आवश्यक चूर्णी में भगवान महावीर के पूर्व भवों की चर्चा करते हुए ऋषभदेव के धनसार्थवाह आदि भवों का वर्णन किया गया है। ऋषभदेव के जन्म, विवाह, तत्कालीन शिल्प कर्म, लेख आदि पर भी समुचित प्रकाश डाला गया है। भरत की दिग्विजय का वर्णन बहत ही अच्छे ढंग से किया है। युद्ध कला का एक बहुत ही अच्छा दृश्य सामने प्रदर्शित किया है। भरत का राज्याभिषेक, भरत और बाहुबलि यूद्ध का विस्तार से वर्णन मिलता है । इसके अतिरिक्त चक्रवर्ती, वासुदेव आदि का भी वर्णन प्रशिक्षण किया गया है।' ६. पद्मचरित या पद्मपुराण :
इस कृति के रचयिता रविषेण हैं। इसकी रचना महावीर निर्माण के १२०३ वर्ष ६ माह बीत जाने पर हुई थी। इस सूचना से इसकी रचना वि०स० ७३४ या सन् ६७६ ई. में हुई थी। इसमें १२३ पर्व हैं, जिनमें अनुष्टुप मान से १८०२३ श्लोक हैं। संस्कृत जैन कथा-साहित्य में यह सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
___ इस चरित्र की कथा-वस्तु में आठवें बलभद्र पद्म (राम) आठवें नारायण लक्ष्मण, प्रतिनारायण रावण तथा उसके परिवारों और सम्बन्धित वंशों का चरित्र वर्णन है।
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, पृ० २६६. २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ४१. ३. बही पु० ४०.