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________________ ( २०२) किये जाने को यान बतलाया है। अथवा शत्र को अपने से अधिक शक्तिशाली समझकर अन्यत्र प्रस्थान को भी यान कहते हैं।' जब विजयाभिलाषी राजा ऐसा समझ लेता है कि शत्र के कार्यों का विध्वंस उस पर आक्रमण करके ही सम्भव है और उसने स्वयं अपने राज्य की रक्षा का प्रबन्ध कर लिया है तो ऐसी परिस्थिति में उस राजा को यान गूण का आश्रय लेना होगा। सोमदेव ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि विगीष को शत्र देश पर अभियान तभी करना चाहिए जबकि अपना देश पूर्णरूपेण सुरक्षित हो। यदि अपने देश में सुरक्षा एवं व्यवस्था का अभाव है तो उसे शत्रु राज्य पर कदापि आक्रमण नहीं करना चाहिए। संश्रय : महापुराण में वर्णित है कि जिसको कहीं शरण नहीं मिलता है, उसे अपनी शरण में रखना संश्रय (आश्रय) कहलाता है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि शक्तिशाली शत्र राजा द्वारा आक्रमण किये जाने पर किसी दूसरे शक्तिशाली राजा के यहाँ आश्रय लेने को संश्रय कहते हैं। कौटिल्य के अनुसार किसी अन्य शक्तिशाली राजा के पास स्वयं को अपनी स्त्री तथा पुत्र एवं धन-धान्यादि के समर्पण कर देने को संश्रय कहते हैं। शक ने इसको आश्रय कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि जब राजा अपनी हीन दशा देखे और शत्र राजा शक्तिशाली हो तथा पराजय की सम्भावना हो ऐसी परिस्थिति में राजा को अन्य शक्तिशाली राजा का आश्रय प्राप्त कर अपनी रक्षा करनी चाहिए । शुक्र के अनुसार शक्तिशाली राजा का ही आश्रय लेना चाहिए। दुधी भाव : शत्र ओं में सन्धि और विग्रह करा देना ही द्वैधीभाव है। सोमदेव के अनुसार बलिष्ट राजा के साथ सन्धि तथा दुर्बल के साथ युद्ध को द्वैधी १. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० १६५. २. अनन्यशरणस्याहुः संश्रयं सत्यसंभ्रयम् । महा पु० ६८/७१ ३. को० अर्थ ७/१. ४. शुक्र० ४, १०६६. ५. सन्धिविग्रर्योवृतिद्व धीभावो द्विषां प्रति । महा पु० ६८/७१. .
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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