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________________ (२०१) के प्रति किये गये द्रोह तथा उपकार को विग्रह कहा जाता है। उनके अनुसार इस गुण का प्रयोग तभी करना चाहिए जबकि विजिगीषु शक्तिशाली हो । वास्तव में यह दो राजाओं के बीच शीत युद्ध की स्थिति है। जब राज्य शस्त्रोपजीवी क्षत्रियों की संख्या अधिक हो और कारीगरों व किसानों की भी अधिकता हो साथ ही शैल दुर्ग एवं नदी दुर्ग सुरक्षित हो और राज्य में शत्र के आक्रमण रोकने की सामर्थ्य है तथा जब प्रचार बल से शत्रु राज्य के निवासियों को उनके राजा के विरुद्ध भड़काया जा सकता हो तो कौटिल्य ने लिखा है कि राजा को जब ऐसा आत्म विश्वास हो जाये तब ही वह विग्रह की नीति अपना सकता है।... ३. प्रासन : जब किसी राजा का अन्य किसी राज्य से शत्रुता का भाव न हो और न उस राज्य के राजा की चढ़ाई करने की इच्छा हो और न उसे किसी अन्य राजा को अपने राज्य पर आक्रमण कर देने का भय हो, तो ऐसे राज्य की स्थिति “आसन" कही जाती थी। यह एक प्रकार से तटस्थ नीति होती है। महापुराण में उल्लिखित है कि जब कोई राजा यह समझकर कि उस समय मुझे कोई दूसरा और मैं किसी अन्य को नष्ट करने में समर्थ नहीं हूं और जो राजा शान्तभाव से रहता है। इसे आसन कहते हैं । इस गुण को राजा की बुद्धि का कारण बताया गया है। यान : महापुराण में बताया गया है कि अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति जो उद्यम है अर्थात् शत्रु पर आक्रमण आदि करना ही यान कहलाता है। यह यान अपनी वृद्धि तथा शत्र की हानि रूप फल देने वाला होता है। आचार्य सोमदेव ने भी शत्र पर आक्रमण १. कौ० अर्थ० ७, १ (अपकारो विग्रह) २. वही ७/३. ३. को० अर्थशास्त्र ७/१. ४. मामिहान्यो हमव्यन्यमशक्तो हन्तुमित्यसो। तूषणींभावो भवेन्नेतुरासनवृद्धिकारणम् ॥ महा पु० ६८/६६. ५. स्ववृद्धो शत्रु हानी वावयोवभ्यिद्यम् स्मृतम् । अरि प्रति विभोयनि तावन्मात्र फलप्रदम् ॥ महा पु. ६०/७०.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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