________________
(१९४) करके ऋषभकूट पर्वत के पूर्व तरफ के कटक पर अपना नाम अंकित किया कि “इस अवसर्पिणी काल के अन्तिम समय में मैं भरत नाम का चक्रवर्ती हुआ हूँ। अर्थात् मैं प्रथम राजा हूँ, समस्त भरत का अधिपति शासक हूँ मनुष्यों में श्रेष्ठ इन्द्र नरेन्द्र हूँ, मेस कोई प्रतिशत्र नहीं है, मैंने समस्त भारतवर्ष को जीत लिया है। भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही इस देश का नाम "भारत" पड़ा है। इस प्रकार भरत चक्रवर्ती के अधीन जितने भी राजा हुये थे वह अपने आन्तरिक कार्यों में पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे। इसी प्रकार अन्य चक्रवर्ती राजाओं का उल्लेख आता है। कहीं-कहीं पर यह उल्लेख भी मिलता है कि चक्रवती सम्राट के अधिकृत राजा चक्रवर्ती सम्राट को कर के रूप में धन देते थे तथा आवश्यकता पड़ने पर अपने धन और सेना से सहायता करने को तत्पर रहते थे। इस प्रकार अनेक शक्तिशाली सामन्त शासक एक दूसरे के मित्र बन जाते थे।
जैनेत्तर ग्रन्थों में भी दिग्विजय का उल्लेख मिलता है। चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने समुद्र तक फैली हुई सारी पृथ्वी जीत ली थी । अर्थात समस्त राजाओं को अपने अधीन कर लिया था। ये सामन्त राजा अपने आन्तरिक कार्यों में स्वतंत्र थे।
जैन मान्यतानुसार चक्रवर्ती राजा के अधीनस्थ ३२,००० मुकुटबंध राजा होते थे। युद्ध-काल में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध :- - - सभी भारतीय विचारक इस बात पर सहमत हैं कि अन्य उपाय विफल हो जाने पर ही किसी राजा से युद्ध प्रारम्भ करना चाहिए। अन्य उपाय हैं :-साम, दाम और भेद । यदि इन उपायों से कोई निर्णय नहीं निकलता हो तब दण्ड का प्रयोग करना चाहिए । जैन ग्रन्थों में भी इस
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ४५-६३. २. महा पु० पर्व १५/१५८-५९. ३. रामायण कालीन युद्धकला पृ० २६४. ४. वही
पृ० २६५. ५. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पृ० २८६.