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________________ ( १९२) चर (गुप्तचर) : देश में आन्तरिक उपद्रवों और बाह्य आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने के लिए गुप्तचरों की नियुक्ति होती थी। ये गुप्तचर चोर डाकुओं तथा राज्य के अन्दर सभी प्रकार के रहस्यों का पता लगाकर उसकी सूचना राजा तक पहुंचाते थे। कौटिल्य ने गुप्तचरों को राजा की आंखें माना है । शत्रु सेना की मुख्य बातों का पता लगाने के लिए भी गुप्तचर काम में लिए जाते थे। ये लोग शत्रुसेना में भर्ती होकर उनकी सब बातों का पता लगाते रहते थे। कूलवालय ऋषि की सहायता से राजा कूणिक वैशाली के स्तूप को नष्ट कराकर राजा के चेटक को पराजित करने में सफल हआ था। व्यवहार भाष्य में चार प्रकार के गप्तचरों का उल्लेख है। (१) सूचकः-यह अन्तःपुर के रक्षकों के साथ मैत्री करके अन्तःपुर के रहस्यों का पता लगाते थे। (२) अनुसूचक :-नगर के परदेशी गुप्तचरों की तलाश में रहते थे (२) प्रतिसूचक :-नगर के द्वार पर बैठकर दर्जी आदि का छोटा-मोटा काम करते हुए दुश्मनों की तलाश में रहते थे। (४) सर्व-सूचक: अनुसूचक और प्रतिसूचक से सब समाचार प्राप्त कर अमात्य से निवेदन करते थे। यह गुप्तचर कभी पुरुषों और कभी महिलाओं के रूप में सामन्त राज्यों और सामन्त नगरों तथा अपने राज्य, अपने नगरों और राजा के अन्तःपुर में गुप्त रहस्यों का पता लगाने के लिए घूमते रहते थे। - कौटिल्य के अनुसार गुप्तचर विविध प्रकार के होते थे। जैसे कापटिक (कपटवृत्ति छात्र), उदास्थित (उदासीन सन्यासी), गृहपति (गृहस्थ), वैदेहक (वणिक ), तापस (तपस्वी), सत्री (विविध शास्त्रों को पढ़ने वाले के रूप में विख्यात गुप्तचर), तीक्ष्ण (शरीर को कुछ न समझनेवाले साहसी पुरुष), रसद (विष देने वाले लोग), भिक्षुकी (सन्यासिनी) आदि । १. अर्थशास्त्र १/१६ पृ० ३३. २ आ० चूर्णी २, पृ० १७४. ३. व्यवहारभाज्य १, पृ० १३० आदि । ४. को० अर्थ० ए० २७.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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