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________________ होते थे जो आधुनिक काल के राजदूतों के होते हैं । भरत बाहुबलि युद्ध होने से पूर्व भस्त ने बाहुबलि के पास दूत भेजा था। कौटिल्य अर्थशास्त्र के अधिकरण प्रथम के अध्याय सोलहवें में स्पष्ट है कि विभिन्न राज्यों के मध्य दूतों का नियमित रूप से आवागमन था। नीतिवाक्यामृत के दूत समुद्देश्य में हमें सभी प्रकार के दूतों का उल्लेख मिलता है। जिनका वर्णन अर्थशास्त्र में हुआ है।' तो भी दूतों की संकल्पना, भूमिका, शैली और व्यवहार में वर्तमान दूतों जैसी विविधता नहीं थी। दूत : ___ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में दूत की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। जो अधिकारी दूरवर्ती राजकीय कार्य का साधक होने के कारण मंत्री के समान होता है, उसे दूत कहते हैं । आचार्य सोमदेव ने दूत की परिभाषा इस प्रकार की है कि “जो अधिकारी दूरवर्तीय राजकीय कार्यों-संधि, विग्रह आदि का साधक होता हैं उसे दूत कहते हैं। जैन मान्यतानुसार जिस व्यक्ति के द्वारा (माध्यम से) राजा संदेश भेजता है, उसे दूत कहते हैं । दूत के गुण: दूत की योग्यता के विषय में उल्लिखित है कि उसे संधि-विग्रह का ज्ञाता, शूरवीर, निर्लोभी, धर्म एवं अर्थ का ज्ञाता, प्राज्ञ प्रगल्भ, वाक्पटु, तितिक्षु, द्विज स्थविर तथा मनोहर आकृतिवाला होना चाहिए ।' आचार्य सोमदेव ने दूत के गुणों का उल्लेख किया है वह इस प्रकार है :--स्वामी भक्त, द्यूतक्रीड़ा, मद्यपान आदि व्यसनों से आसक्त, चतुर, पवित्र, निर्लोमी, विद्वान, उदार, बुद्धिमान, सहिष्णु, शत्रु का ज्ञाता तथा कुलीन होना चाहिए। जो राजा इन गणों से युक्त दतों को अन्य राज्यों में नियुक्त करते थे उनके समस्त कार्य सिद्ध होते थे। १. नीतिवाक्यामृतम्ः दूतसमुद्देश पृ० १७०-१७१. २ वही १३/१५० १७०. ३. जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन पृ० २६०. ४. नीतिवाक्यामृतम् १३/२, पृ० १७०.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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