________________
( १५२ )
स्थापित हो चुका था । रामायण तथा पुराणों के रचना काल से पूर्व वैदिक काल में भी प्राचीन भारतीयों का प्रभाव पश्चिमी एशिया में भी था । इसकी पुष्टि मेसोपोटामिया में प्राप्त हुए बेगाजक्काई के उत्कीर्ण लेखों से होती है, जिनमें वैदिक देवताओं के नाम खुदे हुए हैं । इससे स्पष्ट होता है कि ईसा से लगभग १७०० वर्ष पूर्व भारतीय आर्य और उनका वैदिक धर्म वहाँ तक पहुंच चुके थे।'
रामायण में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की झलक कुछ प्रसंगों से होती है | अयोध्या नृपति दशरथ ने राम को युवराज पद अभिषिक्त करने के लिए अनेक नगरों और राष्ट्रों के रहने वाले प्रधान राजाओं को 'बुलाया था । यह घटना एक प्रकार की राजस्वकृति प्राप्त करने की टेकनिक थी । या तो अवैधानिक रूप से राजनैतिक स्वीकार क्रिया द्वारा नया शासक को आन्तरराज्य व्यवस्था में सादर करने की परम्परा थी ।
जैन
मान्यतानुसार भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर बल दिया गया है । जैसा कि “त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित" में उल्लिखित है कि आर्द्रक नाम का एक नगर था । उसमें आर्द्रक नाम का राजा राज्य करता था । उस राजा के आर्द्रकुमार नाम का पुत्र था। आर्द्रक राजा और श्रेणिक राजा के परम्परागत मित्रता थी। एक बार स्नेह से श्रेणिक राजा ने अपने मंत्री को भेंट लेकर आर्द्रक राजा के पास भेजा । आर्द्रक राजा ने श्रेणिक राजा का पत्र तथा भेंट को बहुत ही हर्ष के साथ स्वीकार किया और श्रेणिक की कुशलता पूछी। मंत्री ने स्वामी का कुशल वृतान्त कहा इससे आर्द्रक राजा का मन बहुत ही प्रसन्न हुआ । यह सब वृतान्त आर्द्रकुमार देख रहा था । उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी । यह मगधेश्वर कौन है ? जिसके साथ आपकी इतनी प्रीति है। आर्द्रक राजा कहा, हे वत्स । श्रोणिक नाम का मगध देश का राजा है । उसके साथ
१४ राजबली पाण्डेय : प्राचीन भारत, वाराणसी : नन्दकिशोर एण्ड सन्स, १९६२) पृ० ३८५.
२. नाना नगरवास्तव्यान्पृथग्जानपदानपि ।
समा निनाय मेदिन्या: प्रधानान्पृधिवीपतीन् ॥ रामायण अयोध्या काण्ड - १/४६.