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(१८०) रहते थे। ये गोपुर ५० धनुष ऊँचे और २५ धनुष चौड़े होते थे। महापुराण के अनुसार प्रत्येक गोपुर द्वार पर पंखा, छत्र, चामर, ध्वजा, दर्पण सुप्रतिष्ठक (ढोना) मृङ्गार और कलश ये आठ-आठ मंगल द्रव्य रखे जाते थे। गोपुर के द्वार पर पहरेदार पहरा देते थे। (१) प्रतोली :
अर्थशास्त्र में वर्णित है कि प्राकार में चार प्रधान द्वारों के अतिरिक्त गौण द्वार भी होते थे। इन्हें प्रातोली कहा गया है। प्रधान नगर द्वार (गोपुर) की चौड़ाई से प्रतोली की छः गुनी होनी चाहिए । नगर द्वार के ऊपर बुर्ज बनाया जाता था, जो कि आकार में घड़ियाल के मुख के यमान होता था। महापुराण में प्रतोली का रथ्या से चौड़ी गली के रूप में चित्रण मिलता है।
इस प्रकार नगरादि-व्यवस्था के अन्तर्गत नगर-विन्यास तथा नगर की सुरक्षा-व्यवस्था का वर्णन जैन पुराणों में मिलता है ।
१. द्वयोरट्टालयोमध्ये गोपुरं रत्नतोरणम् । ___ पञ्चाशब्दनुरुत्सेधं तदधंतपि विस्तृतम् ॥ महा पु० १६/६४. २. महा पु० २२/२७५-२७६. ३. अर्थशास्त्र २/३, पृ० ८०. ४, महा पु० ४३/२०८,