SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपर्युक्त विवरण से हमें जैन पुराण साहित्य, न्याय-व्यवस्था किस प्रकार की थी, इसका पूर्णरूपेण ज्ञान प्राप्त होता है। (१) मुकदमे : ___ जैन मान्यतानुसार न्यायालयों (राजकुल)में मुकद्दमे पेश किये जाते थे । प्राचीन समय में चोरी, डकैती, परदार-गमन, हत्या और राजा की आज्ञा का उल्लंघन आदि अपराध करने वालों को राजकूल में उपस्थित किया जाता था। यदि कोई मुकदमा लेकर न्यायालय में जाता तो उससे तीन बार वही बात पूछी जाती। यदि वह तीनों बार एक ही जैसा उत्तर देता तो उसकी बात सच्ची मानी जाती थी और फैसला उसकी तरफ का ही होता ।' एक बार दो सौतों के बीच झगड़ा हो गया था। उनमें से एक सौत पुत्रवती थी, दूसरी के पुत्र नहीं था। जिसके पुत्र नहीं था वह पुत्र को खूब लाड.प्यार से रखती थी। इसका मतलब यह हुआ कि धीरे-धीरे वह लड़का अपनी सौतेली मां से इतना धुल-मिल गया कि उसी के पास रहने लगा और अपनी खास मां को भूल गया। एक दिन लड़के को लेकर दोनों में झगड़ा चालू हुआ। दोनों लड़के को अपना-अपना बताने लगी। जब कुछ फैसला नहीं हुआ तो वे दोनों न्यायाधीश के पास गई । न्यायाधीश ने बड़े ही विवेक से लड़के के दो टुकड़े कर दोनों सौतों को आधा-आधा बाँट देने का हुक्म दिया। यह सुनकर लड़के की जो खास माँ थी वह बहत घबरायी। और उसने न्यायाधीश से यह निवेदन किया “महाराज मुझे पुत्र नहीं चाहिए, मेरी सौत के पास ही रहने दीजिए।" यह सुनकर न्यायाधीश समझ गया कि यह,पुत्र किसका है । न्यायाधीश ने लड़के की माँ को उसका पुत्र (लड़का) दे दिया। १. निशीषचूर्णी २०, पृ० ३०५. २. दशवकालिक चूर्णी : जिनदासगणि, रतलाम : अगस्त्यसिंह, प्राकृत टैक्स्ट सोसायटी १९३३, पृ० १०४.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy