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________________ (१६४) के लिए लोहे की कीलें, बांस की खप्पचें, चुभाने के लिए छुरी, कुठार, नखच्छेद और दर्भतृणों आदि का उपयोग किया जाता था। . सिंहपुर नगर में दुर्योधन नाम का एक दुष्ट जेलर रहता था। वह जेल में पकड़कर आए हुए चोरों, परस्त्री-गामियों, गंठकतरों, राजद्रोहियों, ऋण-ग्रस्तों,बालघातकों, विश्वासघातकों, जुआरियों, और धूर्तों को अपने कर्मचारियों से पकड़वा, उन्हे सीधा लिटवाता और लोहदण्ड से उनके मुंह खुलवाकर उसमें गर्म-गर्म ताँबा, खारा तेल तथा हाथी-घोड़ों का मूत्र डालता। अनेक कैदियों को उल्टा लिटवाकर उन्हें खूब पिटवाता, उनकी छाती पर शिला रखवा और दोनों ओर से दो पुरुषों से लाठी पकड़वाकर जोर-जोर से हिलवाता । उनका सिर नीचे और पैर ऊपर करके गड्ढे में से पानी पिलवाता, असिपत्र आदि से उनका विदारण करवाता, क्षार तेल को उनके शरीर पर चपड़वाता, उनके मस्तक, गले की घण्टी, हथेली, घटने और पैरों के जोड़ में लोहे की कीलें ठुकवाता, बिच्छू जैसे कांटों को शरीर में घुसाता, सुई आदि को हाथों-पैरों की उंगलियों में ठुकवाता, नखों से भूमि खुदवाता, नखच्छेदक आदि द्वारा शरीर को पीड़ा पहुंचवाता, घावों पर गीले दर्भकुश बंधवाता और उनके सूख जाने पर तड़तड़ की आवाज से उन्हे उखड़वाता। उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि जेलखानों में सभी प्रकार के दण्ड की व्यवस्था रहती थी। जेलों में कोतवाल तथा जेलर बहत ही कर स्वभाव के होते थे। वे निर्दयतापूर्वक दण्ड देते थे। राजगृह का कारागार : राजगह में धन्य नाम का एक सार्थवाह रहता था। एक अपराध किये जाने पर नगर-रक्षकों ने पकड़कर उसे जेल में डाल दिया। उसी कारागार में धन्य के पुत्र का हत्यारा विजय नाम का चोर भी सजा काट रहा था। दोनों को एक खोड़ में ही बांध दिया जाता, इसलिए दोनों को सदा साथ-साथ रहना पड़ता था । धन्य की स्त्री प्रातः काल भोजन तैयार कर उसे भोजन-पिटक (टिफिन) में भरकर दासचेट के हाथ अपने पति के लिए भेजा करती थी। एक दिन विजय चोर ने धन्य के टिफिन में से १. विपाक सूत्र ६, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज ८९.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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