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(१५६) लेकिन जब षडयंत्र का भेद खुल गया तो राजकुमार को लोहे के सिंहासन पर बैठाकर, तप्त लोहे के कलशों में भरे हुए खारे तेल से तपते हुए लोहे का हार और मुकुट उसे पहना दिये गये। इस प्रकार नंदिषेण मृत्यु दण्ड का भागी हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि जैन ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन समय में दण्ड देते समय राजा यह नहीं देखता था कि यह मेरा पुत्र है, यह मेरा भाई है. सभी को कानून अनुसार दण्ड दिया जाता था। . उपर्युक्त कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि राजकुमार राज्यप्राप्ति के लिये अपने पिता को मारने के लिए भी षड्यंत्र रचते थे।
इसके अलावा हत्या करने वाली स्त्रियों को भी दण्ड दिया जाता था। राजा पुष्पनंदि की रानी देवदत्ता अपनी सास से बहुत ईर्ष्या करती थी। उसने अपनी सास को तपे हुए लोहे के डण्डे से दागकर मरवा डाला। इस बात का जब राजा को पता चला तो उसने देवदत्ता को पकड़वाकर, उसके हाथों को पीठ पीछे बँधवा, और उसके नाक, कान कटवा उसे शूली पर चढ़वा दिया। ..इस उदाहरण से विदित होता है कि स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही दण्ड दिया जाता था। किसी पुरोहित ने अपनी गर्भवती कन्या को घर से निकाल दिया। वह किसी गंधी के यहाँ नौकरी करने लगी। कुछ समय पश्चात्, मौका पाकर उसने अपने मालिक (गंधी) के बहुमूल्य बर्तन और कपड़े चुरा लिये । गिरफ्तार कर लिये जाने पर प्रसव के बाद राजा ने उसे मृत्यु-दण्ड की सजा दी।'
(१) चोरों के प्रकार :
जैन ग्रन्थों में चोरों के अनेक प्रकार बतलाये गये हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में आमोष, लोमहर (जान से मारकर सर्वस्व अपहरण करने वाले),
१. विपाक सूत्र ६. २. वही ३. आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ६२.