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________________ (१४७) पदहस्ति के पद पर अभिषिक्त किया। इसके अलावा व्यूह रचना में चक्रव्यूह, दण्डव्यूह और सूचिव्यूह का प्रयोग किया जाता था। _युद्ध आरम्भ करने से पूर्व आक्रमणकारी राजा शत्रु के नगर की चारों ओर से घेर लेते थे। फिर भी यदि शत्रु आत्मसमर्पण के लिए तैयार नहीं होता तो दोनों पक्षों में युद्ध होने लगता था। युद्ध में कूटनीति का भी बड़ा महत्व था। युद्धनीति में निष्णात मंत्री अपनी चतुराई, बुद्धिमत्ता और कला-कौशल द्वारा अनेक ऐसे प्रयत्न करते जिससे शत्रुपक्ष को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य किया जा सके। इसके अलावा शत्रु सेना की गुप्त बातों का पता लगाने के लिए गुप्तचर काम में लिये जाते थे, जो कि शत्रुसेना में भर्ती होकर उनकी सब बातों का पता लगाते रहते थे। कलवालय ऋषि की सहायता से राजा कृणिक ने वैशाली के स्तूप को नष्ट कराकर, राजा चेटक को पराजित करने में सफलता प्राप्त की थी। (III) अस्त्र-शस्त्र जैन साहित्य में जिन युद्धों का उल्लेख है उनमें अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। इनमें मुदगर, मुसंढि (यह एक प्रकार का मुद्गर), करकय (क्रकच-आरी), शक्ति (त्रिशूल), हल, गदा, मूसल, चक्र, कुन्त (भाला), तोमर (एक प्रकार का बाण), शूल, लकुट, भिडिपाल (मुद्गर अथवा मोटे फलवाला कुन्त), शब्बल (लोहे का भाला), पट्टिश (जिसके दोनों किनारों पर त्रिशूल हो), चर्मेष्ट (चर्म से आवेष्टित पाषाण), असिबेटक (ढाल सहित तलवार), खंड्ग, चाप (धनुष), नाराच (लोहबाण), कणक (बाण), कर्तरिका, वासी (लकड़ी छीलने का औजारबसौला), परशु (फरसा) और शतहनी मुख्य थे। युद्ध के लिए कवच अत्यन्त उपयोगी होता था। १. आ० चूर्णी पृ० १७२-७३ २. राजा प्रद्योत बोर दुर्मुख के युद्ध में गरुढ व्यूह और सागरव्यूह रखे जाने का उल्लेख है । उसराध्ययन टीका ६. ३. बा० चूर्णी २, पृ० १७४. ------- ४. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज,पु.१०७.. . ....
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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