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हेमचन्द्र के त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र में इस प्रकार कहा गया है कि “बाहुबलि ने रुष्ट होकर जब भरत पर प्रहार करने के लिये मुष्टि उठाई तब सहसा दर्शकों के दिल कांप गये और सब एक स्वर में कहने लगे- “क्षमा कीजिये, समर्थ होकर क्षमा करने वाला बड़ा होता है । भूल का प्रतिकार भल से नहीं होता।" बाहबलि शान्त मन से सोचने लगे"ऋषभ की सन्तानों की परम्परा हिंसा की नहीं, अपितु अहिंसा की है। प्रेम ही मेरी कुल परम्परा है, किंतु उठा हुआ हाथ खाली कैसे जाये ?" इसलिए उन्होंने विवेक पूर्वक काम लिया, अपने उठे हुए हाथ को सिर पर डाला और बालों कस लुचन करके श्रमण बन गये।' ।
उपर्युक्त युद्ध के वर्णन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ऋषभदेव के पुत्र बाहुबलि ने युद्ध में भी अहिंसाभाव रखकर यह बता दिया कि हिंसा के स्थान पर अहिंसा भाव से भी किस प्रकार सुधार किया जा सकता है।
कूणिक और चेटक के मध्य युद्ध :
कुणिक और चेटक का युद्ध बहुत प्रसिद्ध है। यह युद्ध सेचनक हाथी और अठारह लड़ी के हार को लेकर हुआ था। सेचनक हाथी और अठारह लड़ी का हार राजा श्रेणिक के पास था। राजा श्रेणिक ने अपने जीते जी यह दोनों-हाथी और हार कूणिक को न देकर उसके छोटे भाई वेहल्लकुमार को दे दिया था। वेहल्लकुमार अन्तःपुर की रानियों को हाथी पर बैठाकर गंगा में स्नान करने ले जाता, सेचनक रानियों को कभी सूण्ड से उठाता, कभी पीठ, कभी स्कंध, कभी कुम्भ और कमी सिर पर बैठाता. कभी सूण्ड से उछालता, कभी सूण्ड में जल भरकर उन्हें स्नान कराता था। यह देख कूणिक की रानी पद्मावती को बड़ी ईर्ष्या हुई उसने कणिक से हाथी को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। कूणिक ने एक दिन वेहल्ल को बुलाकर हाथी और हार मांगा। लेकिन वेहल्ल ने कहा कि यदि वह आधा राज्य देने को तैयार हो तो वह दोनों चीजें उसे दे सकता है। वेहल्ल के मन में शंका हो गयी और चम्पा नगरी छोड़ कर वह अपने नाना
१. त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र पृ० ४२८. .