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( १४४ ) इसके बाद दोनों में जलयुद्ध प्रारम्भ हुआ। पोदनपुर नरेश वाहुवलि ने सर्वप्रथम जल में इस प्रकार प्रवेश किया जिस प्रकार ऐसवत हाथी पानी में घसा हो । तब ईर्ष्या से भरत ने पानी की बौछार छोड़ी, शीघ्र ही यह जलधारा बाहुबलि की छाती पर पहुंचकर वापिस आ गई। इसके बाद बाहुबलि ने भी जल की धारा भरत पर छोड़ी। इतनी बड़ी धारा में पड़कर भरतेश्वर पीछे हटकर रह गये। इस जलयुद्ध में भी भरत जीत न सके।
इन यूद्धों के पश्चात भरत बाहबलि के बीच मल्लयुद्ध प्रारम्भ हआ। दोनों मल्ल की भांति अखाड़े में आये । अपनी बाहु ठोककर वह इस प्रकार लड़े जिस प्रकार कि सुवंत तिङ, त शब्द ही भिड़ गये हों। बहुबंध, कुक्कुट, कर्तरी, विज्ञानकरण और भामरी (मल्लयुद्ध की क्रियाएं) के द्वारा उन्होंने भरत के साथ मनमाना व्यायाम किया, फिर बाद में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। बाहबलि ने अपने दोनों हाथों से भरत को वैसे ही उठा लिया जैसे जन्म के समय इन्द्र बाल जिन को उठा लेता है। इसी बीच बाहुबलि पर देवों ने पुष्पवृष्टि की। विजय हुई देख बाहुबलि की सेना कोलाहल करने लगी। राजा भरत बहुत दुखी हुआ। उसने चिन्तन कर अपना चक्र बाहुबलि पर छोड़ा लेकिन चरम शरीरी और परिवार के सदस्य होने के कारण उन पर कोई असर नहीं कर सका। चक्र परिभ्रमण करके वापिस लौट गया। (चरम शरीरी और परिवार के सदस्य पर चक्ररत्न का प्रभाव नहीं होता है।) ...
भरत चक्रवर्ती के इस प्रकार चक्र चलाने पर, बाहुबलि के मन में तरह-तरह के विचार उत्पन्न हुये। उन्होंने सोचा-"क्या मैं भरत को धरती पर गिरा दें, नहीं ! नहीं ! मुझे धिक्कार है । मैं राज्य छोड़ दंगा। क्योंकि राज्य के लिए ही मैंने यह सारा अनुचित कार्य किया है । अपने मन में यह सब विचार कर गजशिशु की तरह स्थिर हो गये, और कहा "हे भाई तुम ही पृथ्वी का उपभोग करो। सोमप्रभ भी तुम्हारी सेवा करेगा। (सोमप्रभ, बाहुबलि का पुत्र था) इस प्रकार कहकर उन्होंने जिनगुरु का नाम लेकर पांच मुट्ठियों से अपने केश उखाड़ लिये। कहीं पर बाहयुद्ध का वर्णन मिलता है लेकिन यह दोनों प्रकार का युद्ध समान ही है।' १. पउमचरिउ पृ० ७३