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________________ (१४१) हो ।' यहासुन कर भरत का सिखाया हुआ मंत्री वहाँ के लिए रवाना हुआ और आधे पल में ही पोदनपुर पहुंच गया। तब आदरपूर्वक बाहबलि ने पूछा कहो कैसे आना हुआ ? भरत ने मेरे लिए क्या समाचार कहे हैं ? इस पर मंत्री ने कहा कि क्या आप और क्या भरत, दोनों में कोई अन्तर नहीं है तो भी आप चलकर पृथ्वीश्वर भरत से भेंट कर लीजिए। जिस प्रकार उनके अट्ठानवे भाई उनकी आज्ञा मानकर रहते हैं वैसे ही आप भी अहंकार छोड़ कर उनकी आज्ञा मानकर रहिए। यह सुनकर बाहुबलि ने दूत पर बिगड़ते हुए बोले कि यह विशाल धरती, केवल हमारे पिता जी की है और किसी की नहीं है। पिताजी ने ही मुझे यह भूमि-भाग दिया है। भरत तो सम्पूर्ण पृथ्वी का स्वामी है- मैं तो केवल पोदनपूर का ही अधिपति हैं। मैं न उससे कुछ लेता हैं और न कुछ देता हं । और न उसके पास जाता हूं। उससे भेंट करने से मेरा कौन सा काम बनेगा। यह सुन कर मंत्रियों ने क्रोध से भड़क कर कहा कि यदि तुम यह सोचते हो कि पिताजी ने बहुत सोच-विचार कर यह पृथ्वी मण्डल तुम्हें दिया है तो याद रक्खो कि गाँव, सीमा, खलिहान और खेत-एक सरसों भर भी बिना कर दिये तुम्हारा नहीं हो सकता है । यह सुन कर बाहुबलि क्रोध से लाल हो उठा और कहने लगा 'ओ' किसका राज्य ? किसका यह भरतद्वीप ? जो समझो, वह तुम सब मिलकर मेरा कर लो। एक चक्र से ही वह यह गर्व कर रहा है कि मैंने समस्त धरा-पीठ को वश में कर लिया। वह नहीं जानता किसके पास एकक्षत्र राज्य रहा है । मैं कल ही परावर्तित भाला, कराल, कणिका, मुग्दर, भुसुण्डि और विशाल पट्टिथ आदि शस्त्रों से ऐसा प्रतिकार करूगा कि उसका सब मान गलित हो जायेगा।' यह सुनकर मंत्रीगण फौरन वहाँ से चल पड़े और पल भर में ही भरत के पास आ गये और कहा कि हे स्वामी ! वह तो आपको तिनके के समान भी नहीं समझता । महाअभिमानी वह अपने घमण्ड में इतना चूर है कि शत्रुक्षयकारी वह आपकी सेवा नहीं करना चाहता, धरती-रमण और युद्ध-संनद्ध वह रणपट मांडकर दाँव चुकाना चाहता है। यह सुन कर राजा भरत भड़क उठे और फौरन ही रणभेरी बजवा १. पउम चरिय पृ० ६१. २. वही पृ० ६३.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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