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________________ (१२९ ) II. अश्व सेना : __ अश्व सेना भी चतुरंगिणी सेना का एक विशिष्ट अंग होता था। अश्व सैनिक बहुत ही चुस्त एवं फुर्तीले होते थे । अश्व का प्रधान अधिकारी महाश्वपति कहलाता था। कहीं-कहीं पर अश्वपति भी कहा गया है । घोड़े तेज दौड़ते थे तथा शत्रु सेना पर पहले से ही आक्रमण कर देते, शत्रु की सेना में घुस कर सेना को विचलित कर देते थे। अपनी सेना को सान्त्वना देते रहते और शत्रुसेना द्वारा पकड़े हुए अपने योद्धाओं को छुड़ाते, शत्रु के कोष और राजकुमार का अपहरण कर लेते, जिनके घोड़े मर गये हैं ऐसे सैनिकों का पीछा करते तथा भागी हुई शत्रु सेना के पीछे भागते थे।' घोड़े कितने ही किस्मों के होते थे तथा विभिन्न देशों से लाये जाते थे । कंबोज देश के आकीर्ण और कन्थक घोड़े प्रसिद्ध थे । दोनो ही दौड़ने में तेज होते थे। आकीर्ण' ऊँची नस्ल के होते तथा कंथक पत्थर आदि की आवाज से नहीं डरते थे। वाह लीक देश में पाये जाने वाले ऊँची नस्ल के घोड़े अश्व कहे जाते, इनका शरीर मत्र आदि से लिप्त नहीं रहता था । गलिया अश्व का भी उल्लेख मिलता है। उसे बार-बार चाबक मार कर और आरी से चलाने की जरूरत होती थी। यह गायों को देखकर उनके पीछे दौड़ने लगते और रस्सा छुड़ाकर भाग जाते थे। आदि पुराण में कम्बोज, सैन्धव, आरट्टज, वाहलीक, तैतिस, गांधार और वाप्य आदि जाति के अश्वों को युद्ध के लिए उपयोगी बताया गया है। महाभारत में अश्वों को शीघ्र गतिवाला तथा उत्साही बनाने के लिए युद्ध के समय मदिरापान कराये जाने का उल्लेख है। ___घोड़े कवच से सज्जित रहते, उत्तरकंचुक धारण किये रहते, आँखें उनकी शुक्ल वर्ण की होती, मुंह पर आभरण लटका रहता और उनका १. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० १०१. २. ज्ञातृधर्मकथा की टीका में आकीर्ण घोड़ों को "समुद्रमध्यवर्ती" बताया है। ३. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति २, पृ० ११०, अ: उत्तराध्ययन टीका अ० ३, तथा रामायण १/६/२२. ४. उत्तराध्ययन सूत्र १, १२, २७वां अनुकीय अध्ययन. ५. महा पु० ३०/१०७. ६. महाभारत द्रोणपर्व ११२/५४-५५
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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