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(१) पूरयन्ती परिषद :
राजा जब यात्रा के लिए बाहर जाता, तब जो राज कर्मचारी उनकी सेवा में रहते थे, उनकी परिषद को "पूरयंती परिषद” कहा गया । (२) छत्रपती परिषद :
इस परिषद के सदस्य राजा के सिर पर छत्र धारण करते थे, और राजा को वाह्यशाला तक प्रवेश करा सकते थे, इससे आगे नहीं । (३) बुद्धि परिषद : -
__इस परिषद के सदस्य लोक, वेद और शास्त्रों के पण्डित होते थे। लोक प्रचलित अनेक प्रवाद उनके पास लाये जाते, जिनकी वह छानबीन करते थे। (४) मंत्रि परिषद :
यह परिषद बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती थी। इस परिषद के सदस्य कौटिल्य आदि राजशास्त्रों के पण्डित होते थे, लेकिन उनके पैतृकवंश का राजकुल से कोई सम्बन्ध नहीं होता था। यह लोग राजा का हित चाहने वाले तथा स्वतंत्र विचारों के होते और राजा के साथ बैठकर एकान्त में मन्त्रणा किया करते थे। (५) रहिस्यकी परिषद :
इस परिषद के सदस्यों का कार्य होता था कि जब कभी रानी राजा से रूठ जाती, रजस्वला होने के बाद स्नान करती, या कोई राजकुमारी विवाह के योग्य होती, तो इन सब बातों की सूचना राजा के पास तक पहुंचाते, इसके अलावा, रानियों के गुप्त प्रेम तथा रतिकर्म आदि की सूचना भी ये लोग राजा तक पहुंचाते थे।
उपर्युक्त परिषदों में से मंत्रिपरिषद शासन-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग होती। प्राचीन भारतीय राजनीतिज्ञों ने मंत्रिपरिषद को राज्य
१. बृहत्कल्प भाष्य पीठिका ३७७-३८३, -------
आधार जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ६०