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________________ (९७) राजा के गुण : राज्य के अन्दर शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए तथा बाह्य आक्रमणों से देश की रक्षा करने के लिए राजा की आवश्यकता होती है, इसलिए राज्य के उत्तरदायित्व को वहन करने के लिए राजा में ऐसे गुण होने चाहिए, जिससे कि वह राज्य का संचालन सम्यक् ढंग से कर सके । इसीलिए प्राचीन मनीषियों ने राजाओं के गुणों का निर्धारण किया है । जैनागमों तथा पुराणों में राजाओं के गुणों का उल्लेख किया गया है । इन ग्रन्थों के अनुसार राजा को जैन धर्म के रहस्य का ज्ञाता, शरणागत वत्सल, परोपकारी, दयावान, विद्वान, विशुद्धहृदयी, निन्दनीय कार्यों से पृथक, पिता के तुल्य प्रजा का रक्षक, प्राणियों की भलाई में तत्पर, शत्रुसंहारक, शस्त्रों का अभ्यासी, शान्ति कार्य में थकावट से रहित, परस्त्री से विरत, संसार की नश्वरता के भय से धर्म में आसक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय होना चाहिए।' पद्मपुराण में वर्णित है कि राजा को नीतिज्ञ, शूरवीर और अहंकार से रहित होना चाहिए। महापुराण में बताया गया है कि आत्मरक्षा करते हुए प्रजा का पालन करना ही राजा का मौलिक गुण बताया गया है। जैनेत्तर साहित्य में भी उक्त विचार उपलब्ध हैं। महापुराण के अनुसार राजा अपने चित्त का समाधान कर जो दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों का पालन करता है, वही उसका समंजसत्व गुण कहलाता है।' पद्मपुराण के अनुसार शक्तिशाली एवं १. जिनशासनतत्त्वज्ञ : शरणागतवत्सलः । सत्यस्थापितसद्वाक्यो बाढ़ नियमितेन्द्रियः ॥ पदम पु०६८-२०-२४, महा० पु० ४/१६३, औपपातिक सूत्रः टीका अभयदेव सूरि संशो० द्रोणाचार्य, सूरत: माणेकलाल, नहालचंद आदि ट्रस्टीओं वि० स० १९६४, ६ पृ० २०. २. पद्म पु० २/५३ ३. कृतात्मरक्षणश्चैव प्रजानामनुपालने । राजा यत्नं प्रकुर्कीत राज्ञां भोजो हृदयं गुणः महा पु० ४२/१३७. ४. महाभारत शान्तिपर्व ६३/१७, ७१/२-११. ५. राजाचित्तं समाधाय यत्कुर्याद दुष्टनिग्रहम् । शिष्टानु पालनं चैव तत्साम जस्यञ्मुच्यते । महा पु० ४२/१६६.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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