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( सूचना )
जिस महान नररत्न का परिचय इस पुस्तक में कराया गया है उसके जीवन चरित्र की तुलना करके और उसका अनुकरण करके मनुष्य अपने जन्मको सफल कर सकता है । पेथडकुमारने अपनी दरिद्रावस्था में किस प्रकार से धैर्य रक्खा और अपनी उन्नावस्था में अपने द्रव्य को किस तरह सन्मार्ग में. खर्च किया और धर्म को किस प्रकार सेवाकी यह सब बातें पाठकोंको इस छोटीसी पुस्तक से अच्छी तरह मालुम हो जायेंगी । सुकृतसागर काव्य में पेथड कुमारका चरित्र वर्णन किया गया है उसपर से भव्य जीवोंके हितार्थ संक्षेप में यह पुस्तक परमपुज्य शान्त मूर्ति इंससमनिर्मल प्रातःस्मरणीय श्रीमन्मुनि श्री हंस विजयजी महाराज साहबने लिखो है अतएव हम आपका अन्तःकरण पूर्वक उपकार मानते हैं ।
प्रस्तुत वृतान्त ईस्वी सन् १२०० के साल के लगभग अर्थात् १३वीं सदी में बना है। इसके साथ यह ऐतिहासिक वृत्तान्त अपनी जैन समाज को भी उपयोगी होना सम्भव मालुम होता है । उस समय
* “ मांडवगढनो मंत्री पेथडकुमार* से उद्धृत
-प्रकाशक.