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१८ पेथडकुमारका परिचय. मंत्रीवर ! वह लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती इसकी तीन गति अवश्य होती है यानि दान, लोग और नाश । अतएव इसको मंदिर और प्रतिमाए बनाने में व स्वधर्मीवात्सल्य में व्यय कर देना , उचित है क्योंकि इन कार्यों में जो
पुण्योपार्जन होता है वह केवलज्ञानी र लगवान हो जान सकते हैं । इत्यादि की
समुपदेश सुनकर पेथमकुमारने मांगवगढ में अट्ठारह लाख रुपये खर्च कर कर देरियों सहित श्री आदीश्वर जगवान का मंदिर बनवाया और जसका श्री शत्रुञ्जयावतार नाम रक्खा
और पृथक र स्थानों पर ७३ जिनालय में बनवाए उनमें से कितनेक के नाम इस प्रकार है १ श्री सिफाचलपर श्री शां.