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________________ Dt. 19-07-2018-45 .. कीर्ति-स्मृति . . हमने कहा - नहीं, अब कुछ पूछना बाकी नहीं है। ..... कीर्ति ने कहा : ठीक है, अब देव मेरे विषय में कहते हैं वह लिख लो प्रतापभाई ! मैंने पुनः लिखना शुरु किया । देवता का कथन कीर्ति धाराप्रवाह लिखवाता रहा - "कीर्ति ! तुम बहुत सुखी होंगे । २१ दिन की माला-जाप कर लो । जाप के दौरान - २१ दिन लाल वस्त्र पहन कर, आम्रवृक्ष की लकड़ी के बाजठ पर आम्रवृक्ष की लकड़ी रख कर, उस पर स्वस्तिक बना कर, चावल रखकर, लाल कनेर के फूल रखकर धूप इत्यादि करो और नव माला फेरो ..." "नव मास तक पैसे लेने के लिए कलकत्ता नहीं जाना, २१ दिन का जाप पूर्ण होने के बाद, नव मास के बाद जा सकते हो।"................. ... ___ कथन पूर्ण होने के बाद देव जा रहे हैं ऐसा लगा।"देव अब जा रहे हैं" कह कर दीनतापूर्वक एवं भक्तिभावपूर्ण चेहरे से कीर्ति नमन कर रहा था । आरंभ में देव के साथ कीर्ति ने झगड़ा किया था अतः उसके लिए क्षमायाचना करते हुए वह बोला "मैंने आपके साथ बहुत झगड़ा किया है, मुझे क्षमा करें...।" और 'अरे ! तू तो बालक है, तुझसे कैसे झगड़ा किया जा सकता है ?' कहते हुए देव बिदा हुए । हम भावविभोर कीर्ति को देवता के देखाव के विषय में पूछने लगे । उत्तर में उसने अपनी बदली हुई, सामान्य आवाज़ में कहा, 'लाल वर्ण, लाल लंगोट, मस्तक पर मुकुट, बगल में सर्प और दूसरी बगल में सिंह और हाथों में धनुष्य और बाण थे... ।' इस प्रकार कहने के बाद थोड़ी देर में कीर्ति सो गया और हम भी इस प्रसंग के विषय में स्वस्थतापूर्वक चिन्तन करते करते, कुछ आश्चर्य, कुछ धन्यता, कुछ जागृति और कुछ कुछ अंशों में अन्यमनस्कता का अनुभव करते हुए निद्राधीन हुए । दूसरी सुबह कीर्ति पर मानों कोई बलवत्तर प्रेरणा कार्य कर रही थी जिसके फलस्वरूप उसने दवाइयाँ लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया और तुरन्त उसे निसर्गोपचार केन्द्र Nature cure Hospital पर ले जाने के लिए आग्रह करने लगा। विचार करने पर हमें भी वही प्रेरणा बलवती और श्रेयस्कर प्रतीत हुई और हम तैयारी करने लगे। टैक्सी बुला ली और एक घंटे में ही वहाँ से सीधे अमीरपेठ जाने के लिए रवाना हो गये । जाते समय कीर्ति ने उस अस्पताल के (मूलतः उस्मानिया अस्पताल) उद्दण्ड, विवेक एवं प्रेम विहीन, पत्थर दिल एलोपैथ डोक्टर पर चिट्ठी लिखी : "डोक्टर साहब, आपके द्वारा की गई मेरी चिकित्सा के लिए धन्यवाद । ईश्वर की प्रेरणानुसार अपनी खुशी से मैं यह अस्पताल छोड़कर जा रहा हूँ। ईश्वर ही मेरा ध्यान रखेंगे। ईश्वर से महान इस विश्व में और कोई शक्ति नहीं है। - कीर्तिकुमार" (गुजराती से अनुवाद : श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया) . . . (45)
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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