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________________ Dt. 19-07-2018.43 .. . ... ... . . ......कीति-स्मृति . . । --- उत्तर : वे आयंबिल करें... बीमारी एवं प्रसूति के समय सावधानी एवं शुद्धिपूर्वक नमस्कार मन्त्र का जाप करवायें... सब कुछ अवश्य ठीक होगा। माजी : घर में इन दिनों सब अस्वस्थ क्यों रहते हैं? उत्तर : धर्मध्यान से सब के रोग दूर होंगे । सब आयंबिल करें । माजी : बड़े भाई के विषय में देव क्या कहते हैं ? उत्तर : कुछ समय से उनके मन में धर्म के प्रति आस्था बढ़ रही है, समय में परिवर्तन हुआ है। माजी : शरद, हर्षद और अन्य बालकों के विषय में.... उत्तर : (ग) महान धार्मिक था । वह दैवी आत्मा है, अतः अगर उसे योग्य वातावरण मिलेगा तो निश्चित रूप से धर्म की ओर मुड़ेगा। आगे, भविष्य में शरद का विद्या के मार्ग पर अच्छा विकास होगा । वह या तो साधु, महान विद्वान् या बहुत बड़ा आदमी बनेगा। (घ) दैवी आत्मा है, (च-छ) का धर्मज्ञान अच्छा है, परन्तु भविष्य में (छ) का धर्म का ज्ञान अधिक नहीं रहेगा । (ज-झ) को कुछ अंशों में धार्मिक संस्कार हैं। (झ) उच्च आत्मा नहीं है। (य) सामान्य है।... (ढ़) भ्रष्ट है । जैनधर्म संबंधित सब प्रकार के (दूषित) कर्मों में लिप्त है। माँजी : उसमें से उसे बचाने का कोई उपाय ? उत्तर : केवल एक ही उपाय है। उसकी माता वर्षीतप करें, भगवान के पास हाथ जोड़कर पुत्र के हित के लिए प्रार्थना करके मांग करे और वह घर वापस आ जाये तो वह बच सकता है...। माँजी : (ट) के विषय में ? उत्तर : (ट) को धर्मज्ञान अच्छा है, परन्तु छल और कपट की वृत्ति बलवत्तर हो जाती है... । (ठ) की आत्मा सरल है। माँजी : क और ख के विषय में क्या कहते हैं ? (ख) की बुद्धि इतनी हठाग्रही क्यों है? उत्तर : क-ख का चित्त धर्मध्यान में नहीं है। क कपटी हैं। ख की बुद्धि का कारण पूर्व जन्म के कर्म हैं। माँजी : परन्तु वे मेरे.... हैं ना ! धर्म की ओर उनका झुकाव क्यों न हो? उत्तर : देव ना कहते हैं। पूर्वकृत कर्म हैं। पिछले जन्म में ख जैन न थे । पूर्व के किसी जन्म में नहीं मिले हुए संस्कार प्रथम बार पिता के घर में प्राप्त हुए, लेकिन श्वसुर गृह जाते ही इस दिशा में उनका विकास रुक गया । धर्म को अपनाने में अनेक बाधाएँ आती रहीं। जो स्वयं को अत्यधिक आधुनिक मानते हैं उनके संसर्ग के कारण पिता के घर में जो संस्कार प्राप्त हुए थे वे सब भी विस्मृत हो गये। माँजी : मेरी बहन की मृत्यु बहुत पहले हो गई थी, उनकी आत्मा को शांति है ? (43)
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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