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________________ Dt. 19-07-2018-42 . कीर्ति-स्मृति इस प्रकार प्रश्नोत्तर हो रहे थे । मैं पलंग के पास कुरसी पर बैठा था। पास ही टेबल पर अगरबत्ती जल रही थी। लिखते समय मेरा पैर टेबल को छू रहा था । अन्धेरे में भी यह देखकर कीर्ति बोल पड़ा- प्रतापभाई, आपका पैर टेबल को छू रहा है.... उसी टेबल पर देव सूक्ष्म रूप धारण करके बैठ गये हैं। उनके धनुष्य इत्यादि साधनों को आपका पैर छू रहा है जिससे अविनय हो रहा है, इसलिए जरा पैर (हटा लीजिए)। - यह सुनते ही मैंने पैर हटा लिए । कीर्ति ने माँजी से कहा : माँजी, आप जो पूछना चाहती हो वह पूछिए।' माँजी : भगवान से पूछ कि मुझे धर्मध्यान में कुछ ध्यान क्यों नहीं रहता, ज़्यादा समझ में क्यों .. :... माँजी ने पूछा और कीर्ति पूर्ववत् देवता को नमन कर के पूछता रहा : .... कीर्ति : भगवान नहीं, 'देव' कहिये, 'भगवान' कहते हैं वह उन्हें अच्छा नहीं लगता है, क्योंकि वे तो भगवान के सेवक हैं। ... वे कहते हैं कि आपसे समझ के साथ धर्मध्यान नहीं हो सकता है फिर भी आपकी आत्मा का झुकाव धर्म के प्रति है ही । उस पुण्य के प्रताप से ही आपको सुपुत्रों की प्राप्ति हुई है। आपकी उन्नति का समय, पुत्रों का सुख इत्यादि देखने का समय इन दस वर्षों की अवधि मैं है जिससे आपकी आत्मा को शान्ति प्राप्त होगी और इस सुख के कारण.धर्मविषयक आपके ज्ञान में वृद्धि होगी। आम के पेड़ पर फल आने में समय लगता है। अभी तो यथा सम्भव धर्मध्यान करते रहें। छ: मास के बाद अपने आप ही प्रोत्साहन प्राप्त होगा । छः मास के बाद आपके जीवन में धर्मध्यान का योग अच्छा है। माँजी : चन्दुभाई के लिए धर्मध्यान के विषय में पूछ । उत्तर : चन्दुभाई को यद्यपि धर्मध्यान का योग प्राप्त नहीं होता है फिर भी उनकी आत्मा धर्मिष्ठ है अतः उनको सब का साथ प्राप्त होगा तो.धर्म का योग मिलेगा। प्र.: चन्दुभाई के जन्माक्षर मिलते नहीं है जिस कारण से उनके विषय में अधिक जानकारी भी मिलती नहीं है, तो उनके जीवन के विषय में कुछ देव कहेंगे ? उत्तर : वे मातापिता के आज्ञांकित पुत्र हैं, स्वभाव से अत्यन्त नम्र हैं, ईश्वर के प्रति गहन श्रद्धा है, धर्मध्यान के लिए समय प्राप्त न होने पर भी ईश्वर के प्रति आस्था है, दूर होते हुए भी निकट की कक्षा तक पहुँचे हुए व्यक्ति हैं । इस भव में उनकी आत्मा स्वयं धर्मध्यान नहीं कर पा सकने पर भी औरों को उसके लिए प्रेरित एवं सहाय कर सकती है। माँजी : चन्दुभाई को रोग, स्वास्थ्य विषयक तकलीफ क्यों रहती है? उत्तर : भवभव के कर्म हैं.... अब कट रहे हैं। माँजी: छोटी भाभी की बीमारी के विषय में पूछ, उनकी प्रसूति के विषय में समस्या है तो क्या करें?. ..
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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