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जो प्रतिमा रौद्र (भयानक) हो वह कराने वाले का नाश करे, अधिक अंग वाली हो वह शिल्पी (कारीगर) का नाश करे, दुर्बल अंगवाली हो वह द्रव्य का नाश करे और कृश-पेट वाली हो वह दुर्भिक्ष करे।
प्रतिमा ऊंचे मुखवाली हो तो धन का नाश करे, तिरछी दृष्टि वाली हो तो तिरस्कार करावे, अधिक गाढ़ दृष्टि हो तो अशुभ जानें और नीची दृष्टि हो तो विघ्नकारक जानें। देवों के शस्त्र कैसे रखें
चार निकाय के (भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकये चार जात के) देवों की मूर्ति के शस्त्र मस्तक के केश के ऊपर तक रखे हुए हों तो वे मूर्ति करने वाले, करवाने वाले और स्थापन करने वाले के प्राण का और देश का विनाश करने वाली जानें।
इस प्रकार सामान्य रूप से देवों के शस्त्र रखने का नियम कहा, वह सभी देवों के लिये हो ऐसा नहीं दिखता, क्योंकि भैरव, भवानी, दुर्गा, काली आदि देवों के शस्त्र मस्तक के ऊपर गये हुए उनकी मूर्तिओं में देखने में आते हैं, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ऊपर का नियम शांत स्वभाववाले देवों के लिये होगा।
भयानक स्वभाव वाले देव असुरों का संहार करते दिखते हैं, इसलिये उनके शस्त्र उठाये हुए रहने से मस्तक के ऊपर जाय वह स्वाभाविक है, इसलिये उनका दोष नहीं गिना जाता होगा। परंतु वे देव अगर शांत चित्त होकर बैठे हों ऐसी स्थिति की मूर्ति बनवानी हो तो उस समय शस्त्र उठाये हुए नहीं रहने से शस्त्र मस्तक के ऊपर नहीं जायेंगे, जिससे उपर्युक्त नियम शांत स्वभावी देवों के शस्त्रों के विषय में कहा होगा ऐसा प्रतीत होता है। उपसंहार
चौबीस जिनदेव, नवग्रह, चोसठ योगिनी, बावन वीर, चौबीस यक्ष, चौबीस यक्षिणी, दस दिकपाल, सोलह विद्यादेवी, आदि आदि देवों के वर्ण, चिह्न, नाम और आयुध आदि का विस्तारपूर्वक, वर्णन अन्य ग्रंथों से जानें।
(प्रतिमा विषयक विधान समाप्त)
जैन वास्तुसार
जन-जन का उठवास
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