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प्रस्तुत कृति के लिए आशीर्वचन : "भाई प्रतापकुमारजी टोलिया ने इस कृति का हिन्दी अनुवाद एवं पुन: सम्पादन किया है, एतदर्थ हमारी ओर से उनके कार्य हेतु हार्दिक अभिनन्दन एवं आशीर्वाद हैं।"
-Gnorinne ___787
जैन वास्तुसार